________________
आचारदिनकर (खण्ड-४) 30 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि रूप के प्रति क्रमशः राग करने पर आयम्बिल का तथा द्वेष करने पर उपवास का प्रायश्चित्त बताया गया है। बैठकर आवश्यकक्रिया करने पर आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। शक्ति होने पर भी बैठे-बैठे प्रतिक्रमण करे, अथवा आवश्यकक्रिया न करे, तम्बाकू, इलायची, लवंग, सुपारी, चन्द्र जाती के फलों का भक्षण करे, ताम्बूल (पान) आदि पंच सुगन्धी वस्तुएँ खाए, गुरु का संस्पर्श करे, कारण बिना दिन में सोए, वाहन से एक योजन तक जाए, जूते पहनकर एक योजन तक जाए या अज्ञातमार्ग पर साधु एक योजन तक जाए, मधुकरवृत्ति से गोचरी ग्रहण न करे, गुरु, ज्येष्ठ मुनि आदि को अविधिपूर्वक वंदन करे, एक योजन तक नौका द्वारा नदी आदि में जाए या अल्पमात्रा में पानी से भींगे, रात्रि में एक योजन तक जाए, स्त्रीकथा करे, प्रमादवश चारों कालों में, अर्थात् स्वाध्याय के समय स्वाध्याय न करे, पैरो से एक योजन तक नदी के मध्य में जाए, नदी, दीर्घिका आदि में जाने के पश्चात् प्रतिक्रमण न करे, (भोजन) मण्डली का त्याग करे तथा साधुओं को आहार करने हेतु निमंत्रित न करे - इन सब दोषों की शुद्धि के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है। प्रासुककाय (जैसे - प्रवाल-पिष्टी) का भक्षण करने पर पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ड) का प्रायश्चित्त आता है। अत्यधिक विकृति का सेवन करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। अहंकारपूर्वक एक भी पंचेन्द्रिय जीव का घात करने पर उस महापाप की शुद्धि बेले के तप से भी नहीं होती है। जितने पंचेन्द्रिय जीवों को पीड़ित करे, उतनी ही संख्या में बेले का प्रायश्चित्त आता है। पुरुष तथा स्त्री का घात करने पर प्रत्येक के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मृषावाद, अदत्तादान और परिग्रह व्रत का भंग करने पर प्रत्येक व्रत के लिए जघन्यतः एकासन, मध्यमतः आयम्बिल तथा उत्कृष्टतः उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अहंकारपूर्वक इन तीनों व्रतों का भंग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। इन तीनों व्रतों का स्वप्न में भंग होने पर प्रत्येक व्रत के लिए चार लोगस्स के कायोत्सर्ग का प्रायश्चित्त आता है। मैथुन की आकांक्षा करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है, किन्हीं परिस्थितियों में बेले का प्रायश्चित्त भी आता है। हस्तमैथुन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org