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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 29 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि चातुर्मास के अन्त में सर्व अतिचारों की शुद्धि के लिए कुछ मुनिजन बेले का प्रायश्चित्त बताते हैं, तो कुछ मुनिजन दस उपवास का प्रायश्चित्त भी बताते हैं। अब तप के अतिचारों की शुद्धि हेतु प्रायश्चित्त-विधि बताते जिस तप का भंग हुआ हो, प्रायश्चित्त हेतु पुनः वही तप करे। ग्रंथि आदि नियम का भंग होने पर पूर्व में कही गई तप-विधि का तथा एक सौ आठ बार नमस्कारमंत्र का जाप करें। प्रायश्चित्त हेतु किए जाने वाले तप के भंग होने पर तथा कदाचित् विस्मृति के कारण उस दिन उस तप का प्रत्याख्यान न किया हो, तो जिस तप का प्रत्याख्यान लिया है, उस तप के प्रत्याख्यान का त्याग न करे, अर्थात् उसमें ही लीन रहें। जानबूझकर नियम का भंग करने पर उसकी शुद्धि प्रायश्चित्त से नही होती है। प्रत्याख्यान का विस्मरण होने पर तथा उनका भंग होने पर उसका प्रायश्चित्त गुरु के कथनानुसार करें। शक्ति होने पर भी किंचित् भी ज्ञानाभ्यास या तप न करे, इसी प्रकार संयम के साधनरूप वैयावृत्य एवं सेवा-सुश्रुषा न करे - तो इन दोषों की शुद्धि के लिए एकासन का प्रायश्चित्त बताया गया है। अब योग करने वाले मुनियों के (योगोद्वहन के समय लगने वाले दोषों के) प्रायश्चित्त की विधि बताते हैं - योगसाधक अप्रासुक (असंघट्टित) अन्नादि का भक्षण करे, रात्रि के समय अन्न-पान को पात्र से ढंककर रखे, अथवा उसे स्वयं के पास में रखकर रात्रि में उसका क्वाथ बनाए, अकाल में मलमूत्र का विसर्जन करे, अप्रतिलेखित स्थण्डिलभूमि पर मलमूत्र का विसर्जन करे तथा शरीर-शुद्धि करे, मधुकरीवृत्ति से गोचरी ग्रहण न करे। प्रगाढ़ रूप से क्रोध, मान, माया एवं लोभ करे, पंचमहाव्रतों का पूर्ण रूप से विराधन करे, किन्तु उसकी अंशमात्र आलोचना ही करे, दूसरों की चुगली और निंदा करे या पुस्तक भूमि पर या बगल में रखे या उसे दूषित हाथों से ग्रहण करे तथा पुस्तक की आशातना करने वाली अपवित्र वस्तु से लेप करे - तो इन सब दोषों की शुद्धि हेतु उपवास का प्रायश्चित्त आता है। शुभ या अशुभ शब्द, गन्ध, रस, स्पर्श एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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