SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 28 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि राजकथा-देशकथा-स्त्रीकथा एवं भक्तकथा करने पर, क्रोध, मान एवं माया करने पर, अत्यधिक मात्रा में प्रमाद करने पर, भिक्षा में मिला हुआ आहार किसी अन्य को देने पर, उसका संचय करने पर, काल-बेला के समय जल-पान करने तथा पैर धोने पर - इन सभी दोषों की शुद्धि के लिए उत्कृष्टतः आयम्बिल-तप बताया गया है तथा जघन्यतः पूर्वार्द्ध-तप भी बताया गया है। भिक्षा के समय (४७ दोषों का) उपयोग न रखने पर तथा गोचरी की प्रतिलेखना न करने पर या अविधिपूर्वक ये दोनों क्रियाएँ करने पर, नदी आदि पार करने पर प्रमार्जन किए बिना पैर फैलाने पर, गृहस्थ के सामने पैर फैलाने पर, मल-मूत्र आदि का विसर्जन करते समय बोलने पर, गृहस्थों की भाषा में बोलने पर, अरिहंत-प्रतिमा के समीप कफ आदि का त्याग करने पर, मात्रा आदि रोकने पर, ग्लान आदि की सेवा न करने पर, श्रावकों से, अथवा सहवासियों से अंग का मर्दन करवाने पर, अकाल में अंग-मर्दन करने पर, शय्या की प्रतिलेखना न करने पर, द्वार में प्रवेश करने तथा निकलने की भूमि का प्रतिलेखन न करने पर, स्वाध्याय किए बिना आहार-पानी ग्रहण करने पर, मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना किए बिना आहार-पानी करने पर, गुरु के. समक्ष आलोचना किए बिना आहार ग्रहण करने पर, अकाल में आहार-पानी ग्रहण करने पर, अकाल के समय अकारण मलोत्सर्ग-भूमि में जाने पर, चैत्य एवं साधुओं को वन्दन आदि न करने पर, गृहस्थ के आसन का उपयोग करने पर, गमनागमन की आलोचना न करने पर, मुखवस्त्रिका के द्वारा सचित्त वस्तु ग्रहण करने पर, क्षणमात्र के लिए जूते, वाहन आदि का उपयोग करने पर, अज्ञातमार्ग में परिभ्रमण करने पर, पात्र, उपधि आदि में से बीज आदि निकलने पर - इन दोषों की शुद्धि के लिए पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ड) करना आवश्यक है। लम्बे (दीर्घ) समय तक चलने पर, इसी प्रकार दीर्घसमय तक श्रम करने पर, वर्षा के प्रारम्भ में वस्त्रशुद्धि करने पर - इन तीनों दोषो के लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त बताया गया है। कुछ आचार्य इन दोषों की शुद्धि के लिए बेले का प्रायश्चित्त बताते हैं। संवत्सरी एवं चातुर्मास के अन्त में दोष लगने पर भी दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy