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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) 40 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आयम्बिल, मध्यमतः उपवास एवं उत्कृष्टतः बेले का प्रायश्चित्त बताया गया है । जल के जीवों का विनाश करने पर, चींटी, मकड़ी एवं इसी प्रकार के अन्य जीवों का अधिक संख्या में नाश करने पर, दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । अल्पजीवों का घात करने पर अल्पप्रायश्चित्त दें। एक बार अशुद्ध, अर्थात् जीवों से युक्त पानी पीने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है । जीवों से युक्त आहार- पानी का एक बार सेवन करने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है तथा बारंबार उस प्रकार के आहार- पानी का सेवन करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मृषावादत्याग-व्रत का भंग करने पर जघन्यतः पूर्वार्द्ध मध्यमतः आयम्बिल एवं उत्कृष्टतः दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । किसी पर मिथ्या दोषारोपण करने पर, जैसे I को खजाना अमुक मिला है, उत्कृष्टतः उपवास, मध्यमतः निर्विकृति एवं जघन्यतः पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है । स्वयं के घर में अज्ञानतावश चोरी करने पर जघन्यतः पूर्वार्द्ध का प्रायश्चित्त आता है । जानबूझकर घर में चोरी करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । जानबूझकर ऐसी चोरी करने पर, जिससे घर में कलह हो, दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। कुछ आचार्यों ने इसके लिए दस उपवास तथा शुद्ध मन से एक लाख नमस्कार मंत्र का जाप करने का भी प्रायश्चित्त बताया है । अहंकारपूर्वक की जाने वाली सभी चोरियाँ चाहे वे जघन्य हो, तो भी उसका प्रायश्चित्त दस उपवास ही बताया गया है। चतुर्थ व्रत में स्व- पत्नी एवं वेश्या के सम्बन्ध में गृहीत नियम का भंग होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। हीनजाति की परस्त्री से संभोग करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । स्वजाति की परस्त्री से संभोग करने पर एक लाख नमस्कार - मंत्र के जाप सहित दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है । उत्तम कुल की परस्त्री के साथ संभोग करने पर भी दस उपवास सहित एक लाख अस्सी हजार नमस्कार - मंत्र के जाप का प्रायश्चित्त आता है । जानबूझकर, अर्थात् बलपूर्वक स्वजाति की परस्त्री के साथ संभोग करने पर मूल प्रायश्चित्त आता है । वेश्या के साथ इस व्रत का भंग करने पर बेले का तथा पत्नी के साथ गृहीत नियम का भंग करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है । बलपूर्वक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International -
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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