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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 26 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि बताए गए हैं। देव, गुरु तथा स्थापनाचार्य की आशातना करने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। स्थापनाचार्य का नाश करने पर पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ड) तप का प्रायश्चित्त आता है। अवतारणक (द्रव्य आदि से पूजा) करने पर दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। सम्यक्त्व को दूषित करने वाले शंका आदि दोषों का अंशमात्र भी सेवन करने पर सामान्य मुनि को पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ड) का प्रायश्चित्त आता है, किन्तु आचार्य को एकासन का, पाठक को आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। कुछ लोगों के अनुसार आचार्य एवं उपाध्याय (पाठक) द्वारा इन दोषों का सेवन करने पर क्रमशः उपवास तथा एकासन का प्रायश्चित्त आता है। - इस प्रकार दर्शनाचार के ये प्रायश्चित्त बताए गए हैं। अब प्राणातिपात-व्रत सम्बन्धी (दोषों की) प्रायश्चित्त-विधि बताते हैं - __ पृथ्वी, अप, तेजस्, वायुकाय एवं प्रत्येक वनस्पतिकाय का संस्पर्श होने पर इस दोष की शुद्धि के लिए विद्वानों ने निर्विकृति-तप का प्रायश्चित्त बताया है। इन जीवों को अल्प संतापित करने पर तथा गाढ़ संतापित करने पर श्रुतज्ञ-प्रायश्चित्त के रूप में क्रमशः पूर्वार्द्ध एवं एकासन करने के लिए कहते हैं। सूक्ष्म अप्काय एवं तेजस्काय का स्पर्श होने पर उसके प्रायश्चित्त के रूप में भी पूर्वार्द्ध करें। बादर, अपकाय एवं तेजस्काय का स्पर्श करने पर उसके प्रायश्चित्त हेतु विद्वानों ने आयम्बिल करने का निर्देश दिया है। जलचरों का संस्पर्श करने पर एकासन करने के लिए कहा है। गीले वस्त्रों का संस्पर्श होने पर भी एकासन-तप बताया है। ऊनी कम्बल से अप्काय एवं तेजस्काय का स्पर्शन करने पर निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है। तेजस्काय का स्पर्शन होने पर भी मन में शंकित होना की स्पर्शन हुआ या नहीं आयम्बिल (सजल) का प्रायश्चित्त आता है। यात्रा में अंकुरित वनस्पति को कुचलने पर प्रत्येक कोश के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है। हरी वनस्पति का संस्पर्श करने पर तथा अत्यधिक मात्रा में बीजों को कुचलने पर निरन्तर तीन उपवास का प्रायश्चित्त आता है। पल्लवित कोपलों को कुचलने पर जितने दिन तक कुचले, उतने दिन के उपवास का प्रायश्चित्त आता है। नदी पार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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