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आचारदिनकर (खण्ड-४)
24 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि सघन राग रखने पर निरन्तर तीन दिन के उपवास (अट्ठम) का प्रायश्चित्त आता है।
स्थूल परिग्रहव्रत के परिमाण के भंगरूप अतिचार लगने पर बुद्धिमानों ने जघन्यतः, मध्यमतः एवं उत्कृष्टतः क्रमशः एकासन, आयम्बिल एवं उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। दिग्व्रत के अतिक्रमण तथा रात्रिभोजन के दोषों की शुद्धि के लिए पण्डितों ने क्रमशः उपवास एवं निरन्तर दो उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। मांसाहार तथा मद्यपान के पापों का नाश करने के लिए दस उपवास का प्रायश्चित्त बताया है। अनंतकाय का भक्षण करने पर उस पाप के क्षय के लिए उपवास का प्रायश्चित्त आता है। त्यक्त प्रत्येक वनस्पतिकाय का भक्षण करने पर विद्वानों ने उसके लिए आयम्बिल का प्रायश्चित्त बताया है। कर्मदानों, अर्थात् त्याज्य व्यवसायों के करने पर निरन्तर दो उपवास का प्रायश्चित्त आता है। अनर्थदण्डविरमणव्रत का अतिक्रमण करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। सामायिकव्रत के अतिचारों का सेवन करने पर तथा देशावगासिकव्रत एवं पौषधव्रत का भंग होने पर तथा अतिथिसंविभागव्रत का सम्यक् रूप से परिपालन न करने पर क्रमशः उपवास, आयम्बिल, आयम्बिल एवं उपवास तप का प्रायश्चित्त आता है। - ये सब श्रावकों के द्वादशव्रतों के अतिचारों के प्रायश्चित्त बताए गए हैं। श्राविकाओं के द्वादशव्रतों के अतिचारों की विधि भी यही है, किन्तु उनके लिए विशेष क्या है, यह बताते हैं -
सामायिकव्रत या पौषधव्रत में स्त्री का यदि पुरुष से संस्पर्श हो जाए, तो प्रायश्चित्त के रूप में पच्चीस बार नमस्कारमंत्र का जप करे। बालक का संस्पर्श होने पर भी तुरन्त प्रायश्चित्त करे। पाँचों अणुव्रतों के भंग होने पर स्त्रियों को दस उपवास का प्रायश्चित्त आता है। प्रत्याख्यान होने पर भी कारणवशात् उन अतिचारों का सेवन करने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। सूर्यास्त पूर्व दिवस चरिम, अर्थात् रात्रि में चतुर्विध आहार के त्याग की प्रतिज्ञा नहीं लेने पर या लेकर उसका भंग होने पर एकासन का प्रायश्चित्त आता है। पानी के जीवों को संतापित करने पर तथा षट्पदी (जू) को मारने पर, मठ या चैत्य में निवास करने पर - इन दोषों की शुद्धि के लिए दस उपवास
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