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आचारदिनकर (खण्ड-४) 12 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पूर्वार्द्ध, एकासना, आयम्बिल और उपवास का प्रायश्चित्त आता है। सामान्य रूप से सूत्र का भंग होने पर आयम्बिल का तथा अर्थ का भंग होने पर उपवास का प्रायश्चित्त आता है। उद्देशक आदि वाचना में कदाचित् योग्य एवं अयोग्य का विचार न किया हो, समय पर वाचना का विसर्जन न किया हो, अथवा मण्डली-स्थान का प्रमार्जन न किया हो - इन सभी में निर्विकृति का प्रायश्चित्त आता है।
अनागाढ़योग का भंग किंचित् भी होता है और सर्वथा भी होता है। इसी प्रकार आगाढ़योग का भंग किंचित् भी होता है और सर्वथा भी होता है। अनागाढ़योग का किंचित् और सर्वथा भंग होने पर दोनों ही परिस्थितियों में निरन्तर दो उपवास (बेले) का प्रायश्चित्त आता है तथा आगाढ़योग का किंचित् भंग होने पर आयम्बिल का और सर्वथा भंग होने पर बेले का प्रायश्चित्त आता है। - यह ज्ञानाचार के अतिचारों के तपरूप प्रायश्चित्त का कथन हुआ।
अब दर्शनाचार के निःशंकिता आदि आठ अंगों का प्रायश्चित्त बताते हैं -
शंका, कांक्षा, विचिकित्सा आदि अतिचारों में उपवास का प्रायश्चित्त आता है। मिथ्या उपबृंहणा का क्रमशः साधुओं को पूर्वार्द्ध, साध्वियों को एकासना, श्रावकों को आयम्बिल एवं श्राविकाओं को उपवास का प्रायश्चित्त आता है। साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकारूप चतुर्विधसंघ के द्वारा मिथ्याशास्त्र का भाषण करने पर क्रमशः साधु को निर्विकृति, साध्वी को पूर्वार्द्ध, श्रावक को एकासना और श्राविकाओं को आयम्बिल का प्रायश्चित्त आता है। दर्शनाचार में मुनिधर्म में दीक्षित व्यक्ति के परिवार का पालन करने में तथा व्रत आदि की अपेक्षा साधर्मिक का पालन करने में किसी प्रकार का प्रायश्चित्त नहीं आता है। - यह दर्शनाचार के अतिचारों के तपरूप प्रायश्चित्त का कथन हुआ।
अब चारित्राचार में प्रणिधान (अप्रमत्तता) योग आदि के उल्लंघन करने का प्रायश्चित्त बताते हैं -
____ एकेन्द्रिय जीवों का संस्पर्श, परितापन, महासंतापन तथा उत्थापन करने पर क्रमशः निर्विकृति, पूर्वार्द्ध, एकासना तथा आयम्बिल
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