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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 10 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ६. छट्ट (निरन्तर दो दिन के उपवास) - पथ्य, पर, सम, दान्त और चतुर्धाख्या।। अट्ठम (निरन्तर तीन दिन के उपवास)-प्रमित, सुन्दर, कृत्य, दिव्य, मित्र और सिच।। चोला (निरन्तर चार दिन के उपवास) - धार्य, धैर्य, बल और काम्य। पचोला (निरन्तर पाँच दिन के उपवास) - दुष्कर, निर्वृत्ति और मोक्ष। निरन्तर छः दिन के उपवास - सेव्य, पवित्र, विमल। निरन्तर सात दिन के उपवास - जीव्य, विशिष्ट, विख्यात। निरन्तर आठ दिन के उपवास - प्रवृद्ध, वर्द्धमान। १३. निरन्तर नौ दिन के उपवास - नव्य, रम्य, तारक। १४. निरन्तर दस दिन के उपवास - ग्राह्य, अन्तिम। ___- ये तप सम्बन्धी प्रत्याख्यानों के नाम (संज्ञा) हैं। अब स्थूल एवं सूक्ष्म तप - इन दोनों विभागों का वर्गीकरण करते हैं - १. नवकारसी २. अर्द्धपौरुषी (अर्द्धप्रहर) ३. पौरुषी (एकप्रहर) ४. पूर्वार्द्ध (पुरिमड्ढ/दो प्रहर) ५. अपराह्न (अवड्ढ /तीन प्रहर) ६. द्वि:अशन (दो समय भोजन) ७. एकासन ८. निर्विकृति (नीवि) ६. आचाम्ल (आयम्बिल) और १०. उपवास - इन विभागों की नमस्कारमंत्र के साथ एवं परस्पर संकलना इस प्रकार की गई है - ४४ बार नमस्कारमंत्र का जाप करने से डेढ़ नवकारसी या एक अर्द्धपौरुषी का लाभ मिलता है। ८३ बार नमस्कारमंत्र का जाप करने से दो अर्द्धपौरुषी एवं एक पौरुषी का लाभ मिलता है। __ १२५ बार नमस्कारमंत्र का जाप करने से तीन अर्द्धपौरुषी या एक पूर्वार्द्ध का लाभ मिलता है। २०० बार नमस्कारमंत्र का जाप करने से चार अर्द्धपौरुषी, ढाई पौरुषी, अथवा एक पूर्वार्द्ध का या दो पाद कम एक अपराह्न का लाभ मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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