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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 5 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि विपुल वस्त्र, अन्न, पान, पात्र एवं ज्ञान के उपकरण प्रदान करे । पुस्तक-पूजन एवं मण्डली - पूजन करे । तत्पश्चात् शुभ वेला के आने पर प्रायश्चित्त ग्रहण करने वाला साधु या श्रावक गुरु को प्रदक्षिणा देकर ईर्यापथिकी की आलोचना करके चार स्तुतियों से चैत्यवंदन करे | फिर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना एवं सर्व साधुओं को द्वादशावर्त्तवन्दन करके गुरु के आगे मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन कर कहे - "हे भगवन् ! मुझे आत्मशुद्धि करने की आज्ञा दीजिए । पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करके कहे - “मैं शुद्धि का प्रतिग्रहण करूं ?" पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन कर “हे भगवन् ! मुझे आलोचना ( प्रायश्चित्त) करने की आज्ञा दीजिए।“ पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन कर कहे - “हे भगवन् ! मैं आलोचना करूं, इस हेतु आप मुझे आज्ञा दें।" तब गुरु कहे " आलोचना करे ।" " प्रायश्चित्त द्वारा शुद्धि के निमित्त मैं कायोत्सर्ग करता हूँ" - ऐसा कहकर अन्नत्थसूत्र बोलकर वह कायोत्सर्ग करे । कायोत्सर्ग में चार बार चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे । कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट में चतुर्विंशतिस्तव बोले । गुरु के आगे खड़े होकर तीन बार परमेष्ठीमंत्र पढ़े। तत्पश्चात् निम्न तीन गाथाएँ तीन-तीन बार बोले क - - “वंदित्तु वद्धमाणं गोयमसामिं च जम्बुनामं च। आलोअणाविहाणं वुत्थामि जहाणु पुव्वी । । १ । । आलोयणादायव्वा कस्सवि केणावि कत्थ काले वा । के अ अदाणे दोसा हुंति गुणा के अदाणे वा ।।२ ।। जे मे जाणंति जिणा अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु । तेहं आलोएमि उवट्ठिओ सव्वकांलपि ।। ३ ।।" - यह गाथा तीन बार बोले । यह गाथा बोलकर गुरु के आगे विनयपूर्वक आसन में बैठकर मुख को मुखवस्त्रिका से आच्छादित करके, आगे की तरफ हाथ करके अंजलिबद्ध करे, अर्थात् कली के समान हाथ जोड़कर जो भी दुष्कृत किए हैं तथा जो भी याद हैं, उन दुष्कृतों का कथन करे। गुरु भी समभावपूर्वक उन्हें सुनकर हृदय में - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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