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________________ . 6 ) आचारदिनकर (खण्ड-४) - 406 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इस संस्कार में जो मण्डली-प्रवेश के योग करवाए जाते हैं, उसका कारण बताते हैं - जिस प्रकार किसी व्यक्ति को समाज में या जाति में सम्मिलित किया जाता है, उसी प्रकार उपस्थापना द्वारा साधु को मण्डली-प्रवेश दिया जाता है। इसी प्रकार सांसारिक-व्यवहार का परित्याग करने तथा पुनः संसार में लौटने सम्बन्धी विकल्पों का वर्जन करने के लिए साधक को मण्डली-प्रवेश की क्रिया करवाई जाती है। इस प्रक्रिया के बाद ही वह समान व्रतचर्या वाले यतिजनों के साथ समपंक्ति में बैठकर भोजन कर सकता हैं। - यह उपस्थापना-संस्कार का सार है। योगोद्वहन-संस्कार - अब योगोद्वहन-संस्कार क्यो किया जाता है, उसका कारण बताते है। मन-वचन एवं काया की गतिविधियाँ योग कहलाती हैं। यह संस्कार उनके निग्रह के लिए किया जाता है। शुभध्यान, कालग्रहण, जप आदि अनुष्ठानों से मन का निग्रह होता है। मौनादि करने से वाचा का निग्रह होता है तथा नितान्त विरस आहार एवं संस्पर्श सम्बन्धी विधि-निषेध से काया का निग्रह होता है। - इस प्रकार इस संस्कार में मन, वचन एवं काया की प्रवृत्तिरूप योग का निग्रह होता है। योगोद्वहन करने से कमों का नाश तथा कर्म-मल का विशेष रूप से शोधन भी होता है। शुक्लचारित्र वाले मुनिजन ही आगम-वाचना करने के योग्य होते हैं। श्रुतस्कन्ध, अध्ययन, उद्देशक, समुद्देशक रूप श्रुत को ग्रहण करने तथा उसे अन्य को प्रदान करने हेतु गुरु की अनुज्ञा-आदेश, अर्थात् अनुमति ली जाती है। इस संस्कार में वन्दनादि वैनयिककर्म का विशेष रूप से जो निर्देश दिया गया है, वह विनयधर्म के पालन हेतु है। इसी प्रकार शुभध्यान के लिए स्वाध्याय, स्वाध्याय हेतु कालग्रहण आदि का निर्देश दिया गया है। - यह योगोद्वहन-संस्कार का सार है। वाचनाग्रहण-संस्कार - गुरु-मुख से श्रुत का अध्ययन करना वाचनाग्रहण-विधि है। गुरु के बिना, ज्ञान-ग्रहण को विद्वानों ने 'ख' पुष्प (आकाश के फूल) के समान निरर्थक कहा है। - यह वाचनाग्रहण-संस्कार का सार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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