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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 370 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि चित्त को केन्द्रित नहीं करने वाला हो, संपदा एवं विपदा में तथा वैर रखने वाले शत्रु के प्रति भी समभाव रखने वाला हो, अविवादी हो, सज्जन हो, महान् हो, पराक्रमी हो, गुप्त बातों को गोपनीय रखने वाला हो, प्रसन्नचित्त हो, समुद्र की भाँति मर्यादावान् हो, नीतिशास्त्र में कहे गए अनुसार ही दण्ड का विधान करने वाला हो, अर्थात् मन से दण्ड का विधान न करने वाला हो, कवच-वाहन शास्त्र एवं योद्धाओं में धन का व्यय करने वाला हो, विविध प्रकार के कौतुकों में रुचि रखने वाला हो, दीन-दुखियों के प्रति अत्यधिक दयावान् हो, लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए वैद्य की नियुक्ति करने वाला हो एवं विद्वानों को नियुक्त करने वाला हो, आदि गुणों से संयुक्त क्षत्रिय नृपति-पद के योग्य होता है। नृपति-पद के अभिषेक की विधि - सर्वप्रथम शान्तिक एवं पौष्टिककर्म करे। ऊर्ध्वमुख नक्षत्रों में तथा विवाह एवं प्रतिष्ठा हेतु उचित ऐसे वर्ष, मास, दिन तथा नक्षत्र में लग्नशुद्धि देखकर राज्याभिषेक करे। राज्याभिषेक हेतु नक्षत्र एवं लग्न इस प्रकार होना चाहिए - अनुराधा, ज्येष्ठा, हस्त, पुष्य, रोहिणी, श्रवण, उत्तरात्रय, रेवती, मृगशीर्ष, अश्विनी नक्षत्र राज्याभिषेक हेतु परमावश्यक माने गए हैं, अर्थात् इन नक्षत्रों में राज्याभिषेक करना चाहिए। प्राचीन एवं नवीन आचार्यों ने राज्याभिषेक हेतु पुष्य, आर्द्रा, श्रवण, उत्तरात्रय, शतभिषा, रोहिणी, धनिष्ठा एवं अश्विनी नक्षत्रों को भी उत्तम माना हैं। साथ ही प्रासाद, कवच-धारण, गृह, दुर्ग एवं तोरण का निर्माण भी उक्त नक्षत्रों में करने का निर्देश दिया है। राज्याभिषेक समय में लग्नेश, जन्मेश, मंगल एवं सूर्य ग्रह बली होने चाहिए साथ ही गुरु, चन्द्र, शुक्र एवं मंगल का भी बलवान एवं तेजस्वी होना आवश्यक हैं। यदि ये ग्रह राशि, त्रिकोण भाव स्वराशि तथा उच्चराशि में स्थित हो तो धन एवं कीर्ति देते हैं। किन्तु यदि ये ग्रह अस्त हो अथवा शत्रुराशि या नीच राशि में हो तो राजा को भय, शोक देने वाले होते हैं। पूर्वोक्त गुणों से युक्त राजपुत्र को बृहत्स्नात्रविधि से प्राप्त जिनस्नात्रजल एवं सर्वौषधिवर्ग से युक्त जल से मंगलगीत एवं वांदित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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