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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि की ध्वनियों के बीच उल्लासपूर्वक स्नान करवाए तथा महामूल्य श्वेत वस्त्र एवं उत्तरासंग धारण करवाए। सर्वांगों को आभरण से भूषित करवाए, मुकुट धारण करवाए तथा अविधवा, सपुत्र नारियों द्वारा लाए गए मणि, स्वर्ण, चाँदी एवं शुभ काष्ठ से निर्मित कटिपरिमाण ऊँचाई के ढाई हाथ परिमाण चौकोर, स्वर्णकलश से अंकित, सदश श्वेतवस्त्र से आवृत्त पुरुष-परिमाण सिंहासन पर पर्यंकासन से बैठाए । तत्पश्चात् जल से युक्त बादल जिस प्रकार गर्जना करते हैं, उस प्रकार की ध्वनि करने वाले वन्य वाद्य तथा ढक्का, बुक्क, हुडुक्क, पटह, झल्लरी, भेरी, ताम्र- बुक्क, झर्झर आदि बजवाए। फिर लग्नसमय के आने पर गृहस्थ गुरु समस्त तीर्थों के जल से वेदमंत्रों द्वारा एवं यति गुरु सूरिमंत्र, वलयमंत्र आदि द्वारा उसे अभिसिंचित करे । वेदमंत्र इस प्रकार हैं - "ॐ अर्हं ध्रुवोसि जीवोसि नानाकर्मफलभागेसि शूरोसि पूज्योसि मान्योसि रक्षकोसि प्रबोधकोसि शासकोसि, पालकोसि प्रियोसि सदयोसि यशोमयोसि विभयोसि वीतशंकोसि तदत्र ध्रुवो भूयात् स्थिरो भूयात् दुःसहोसि जयोसि इन्द्रोसि धातासि संहर्तासि उदितोसि उदेतुकामोसि अनिन्द्योसि प्रभुरसि प्रभूष्णुरसि तेजोमयोसि भूयात्ते दीर्घमायुमारोग्यं राज्यं सन्तु ते विपुलाः श्रियो बलानि वाहनानि च अहं ।" - यह अभिषेक - मंत्र है । तत्पश्चात् गृहस्थ गुरु चन्दन, कुंकुम, कस्तूरी ( मृगमदा) को प्रसिद्ध परमेष्ठीमंत्र से अभिमंत्रित करके सूरिमंत्र से तिलक करे । गृहस्थ गुरु निम्न वेदमंत्र द्वारा तिलक करे
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"ॐ अर्हं नमोऽर्हते भगवते रुद्राय शिवाय तेजोमयाय सोमाय मंगल्याय सर्वगुणमयाय दयामयाय सर्वर्द्धिदाय सर्वसिद्धिदाय सर्वशुभदाय सर्वगुणात्मकाय सिद्धाय बुद्धाय पूर्णकामाय पूरितकामाय तदत्र भाले स्थिरीभव भगवन् प्रसादं देहि प्रतापं देहि यशो देहि बलं देहि बुद्धिं देहिं वांछितं देहि अर्हं ऊँ ।" - यह तिलक - मंत्र है ।
तत्पश्चात् यतिगुरु सूरिमंत्र से एवं गृहस्थ गुरु वेदमंत्र द्वारा मुकुट के नीचे भाल पर तीन रेखाओं से युक्त रत्नजटित सुवर्णपट्ट को
बांधे ।
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गृहस्थ गुरु द्वारा बोला जाने वाला वह वेदमंत्र इस प्रकार है
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