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आचारदिनकर (खण्ड-४) ___368 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि (प्रतिक्रमणादि) तुम करवा सकते हो, किन्तु प्रतिष्ठा एवं प्रायश्चित्त-विधि तुम नहीं करवा सकते हो।"
इस प्रकार पदारोपण-अधिकार में स्थानपति-पदारोपण की यह विधि बताई गई है। कर्माधिकारी-पदारोपण-विधि -
सर्वप्रथम कर्माधिकारी-पद के योग्य ब्राह्मण के लक्षण बताते
हैं
द्वादशव्रत एवं सम्यक्त्वधारी हो, वेदों का पारगामी हो, कुशल हो, सर्वशास्त्रों का ज्ञाता हो, प्रमादरहित हो, गुणवान् हो, साधुभक्त हो, सर्व कार्यों में कुशल हो, परोपकारी हो, शूरवीर हो, कृतज्ञ हो, दाता हो, मंत्रवित् हो, राजमान्य हो, चतुर (प्रवीण) हो, प्रखर वक्ता हो, धीर हो, साधुभक्ति में परायण हो, अर्थात् साधुओं की भक्ति करने वाला हो, विनीत हो, देश-काल का ज्ञाता हो - इस प्रकार के गुणों से संयुत ब्राह्मण कर्माधिकार- पद के योग्य होता है।
कर्माधिकारी-पदारोपण-विधि स्थानपतिपद-विधि के सदृश है। इस विधि में भी मंत्रदान नहीं किया जाता है। इस पद सम्बन्धी अनुज्ञा इस प्रकार है -
"गृहस्थों के सोलह संस्कारों में से व्रतारोपण-संस्कार एवं आठ सामान्य संस्कारों में शान्तिक-पौष्टिककर्म को छोड़कर शेष संस्कार तुम करवा सकते हो। तुम राजा की निष्पाप सेवा कर सकते हो तथा उनके अधिकारी रह सकते हो। नृप एवं मंत्री के नहीं होने पर देश एवं ग्राम का पालन कर सकते हो। हे वत्स ! पापकार्यों को छोड़कर तुम सभी कार्य कर सकते हो। इस प्रकार ब्राह्मण-पदारोपण-अधिकार में कर्माधिकारी- पदारोपण की यह विधि बताई गई है। जैन ब्राह्मणों की पूर्वकाल में अनंत शाखाएँ थीं तथा चारों वेदों की भी अनंत शाखाएँ थीं, किन्तु वर्तमान में (जैन) विप्रों की मात्र चार शाखाएँ हैं और चार वेदों की भी चार ही शाखाएँ हैं, वे इस प्रकार हैं - १. इक्ष्वाकु.शाखा २. गौतम शाखा ३. प्राच्योदीच्य शाखा एवं ४. नारद शाखा । इस प्रकार ये चार शाखाएँ हैं। विप्रों
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