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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 366 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि वगैरह सर्व सूरिपद के समान ही होता है। शिष्य गुरु को स्वर्ण, कंकण, मुद्रा एवं वस्त्र द्वारा सम्मानित करे । इस प्रकार पदारोपण - अधिकार में जैनब्राह्मण गृहस्थाचार्य की पदारोपण - विधि बताई गई है। जैनब्राह्मण गृहस्थ - उपाध्याय - पदारोपण की विधि यहाँ सर्वप्रथम जैनब्राह्मण गृहस्थ - उपाध्याय होने की योग्यताओं का वर्णन किया गया है । वेद का ज्ञाता हो, शान्त हो, द्वादशव्रत को धारण करने वाला हो, जीतश्रमी हो, क्षमावान् हो, दाता हो, दयालु हो, सर्वशास्त्रों का ज्ञाता हो, गुरुभक्त हो, प्रजाजन में मान्य हो, कुशल हो, सरल हो, बुद्धिमान् हो ( सज्जन हो) कुलीन हो इस प्रकार के गुणों से युक्त जैन ब्राह्मण गृहस्थ - उपाध्याय - पद के योग्य होता है । उपाध्याय - पदारोपण की विधि. - - - सर्वप्रथम पौष्टिककर्म करके गुरु सम्पूर्ण विधि जैनब्राह्मण-गृहस्थाचार्य पदारोपण - विधि की तरह करे । यहाँ इतना विशेष है कि उसे मात्र श्री गौतममंत्र ही प्रदान करे । गुरु स्वयं के अर्द्ध आसन पर भी उसे न बैठाए और न वासचूर्ण का क्षेपण करे । उस समय निम्न वेदमंत्र बोले “ॐ अर्हं नमोऽर्हते ऽर्हदागमाय जगदुद्योतनाय जगच्चक्षुषे जगत्पापहराय जगदानन्दनाय श्रेयस्कराय यशस्कराय प्राणिन्यस्मिन् स्थिरं भवतु प्रवचनं अर्हं ॐ।" - तीन बार इस वेदमंत्र को पढ़कर पौष्टिकदण्डक का पाठ बोले । यहाँ आचार्य पदारोपण विधि की भाँति गुरु स्वयं नूतन उपाध्याय को नमस्कार नहीं करे। संघ को पूर्ववत् वासचूर्ण एवं अक्षत प्रदान करे। सकल संघ उसको नमस्कार करे तत्पश्चात् गुरु उसे अनुज्ञा दे । यहाँ यह कार्य यति- आचार्य, उपाध्याय, सुसाधु या गृहस्थाचार्य करवा सकते हैं। अनुज्ञा की विधि. - हे वत्स ! व्रतों को धारण करते हुए सम्यक्त्व को पुष्ट करना। आर्हत्-मत में जिस कार्य का वर्जन किया गया है, प्राणान्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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