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आचारदिनकर (खण्ड-४)
354 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ओली में हमेशा एक-एक दत्ति ग्रहण करे, दूसरी ओली में प्रतिदिन दो-दो दत्ति ग्रहण करे, तीसरी ओली में प्रतिदिन तीन-तीन दत्ति ग्रहण करे, चौथी ओली में प्रतिदिन चार-चार दत्ति ग्रहण करे - इस प्रकार बढ़ते-बढ़ते सातवीं ओली में सात दिन तक प्रतिदिन सात-सात दत्ति ग्रहण करे।
दूसरी आठ अष्टमिका में आठ दिवस की एक ओली - ऐसी आठ ओली करने से ६४ दिन में यह दूसरी प्रतिमा पूरी होती है। इसमें पहले आठ दिन की ओली में प्रतिदिन एक-एक दत्ति ग्रहण करे। दूसरी ओली में प्रतिदिन दो-दो दत्ति ग्रहण करे। इस तरह बढ़ते-बढ़ते आठवीं ओली में प्रतिदिन आठ-आठ दत्तियाँ ग्रहण करे।
तीसरी नौ नवमिका प्रतिमा में नौ दिवस की एक ओली - ऐसी नौ ओली करने से यह तीसरी प्रतिमा ८१ दिन में पूरी होती है। इसमें पहले नौ दिन की ओली में प्रतिदिन एक-एक दत्ति ग्रहण करे - इस प्रकार पूर्ववत् बढ़ते-बढ़ते नवी ओली में नौ दिन तक प्रतिदिन नौ-नौ दत्ति ग्रहण करे। चौथी दस दसमिका प्रतिमा में दस दिवस की एक ओली - ऐसी दस ओली करने से चौथी प्रतिमा १०० दिन में पूरी होती है। इसमें भी पहले दस दिन की ओली में प्रतिदिन एक-एक दत्ति ग्रहण करे- इस प्रकार पूर्ववत् बढ़ते क्रम से दसवीं ओली में दस दिन तक प्रतिदिन दस-दस दत्ति ग्रहण करे।
इस प्रकार ये चारों प्रतिमाएँ नौ माह और चौबीस दिन में पूरी होती है।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक विविध जाति के पकवान एवं फल आदि परमात्मा के समक्ष रखे। संघवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है। यह तप श्रावकों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप की चारों प्रतिमाओं के यंत्रों का न्यास इस प्रकार है - :
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