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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
सोपान-तप, सप्तसप्तमिका-तप, आगाढ़। दूसरी अष्टअष्टमिका, आगाढ़-तप
| प्र. द्वि.| तृ. | च. | पं. | ष. स. प्र. द्वि. तृ. | च.पं.]ष. स. अ. दिन ओ. ओ. ओ. ओ. ओ. ओ. ओ. दिन ओ. ओ. ओ. ओ.ओ.ओ. ओ.ओ.
| १ | १ | १ | १ | १ | १ | ११११११११११ २ २] २
| २ | २ | २ | २ २ २ २ २ २ २ २] २ | ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३ ३३३
३ [४ | ४ | ४ | ४|४|४| ४ |
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७ ७ ७ ७ ७ | ७ | ७ | ७७७७७७७७७७
नौ नवमिका-तप, आगाढ़
दस दसमिका-तप, आगाढ़ प्र.द्वि.तृ. च. पं. ष. स.अ.न. प्र. | द्वि. तृ. | च. पं. ष. दिनाओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ.ओ. दिन ओ. ओ. ओ.ओ.ओ.ओ.ओ. ओ
२
२] २|२|२|२|२|२|२|२|२| २ ३|३|३|३|३|३|३|३|३|३|३|
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२ | २|२|२|२| २ | २| २ | २
३३ ३ |३| ३ | ३
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४|४|४|४|४|४|४|४|४|४|४|
४|
४|४|४|४|
४|
४|४
४
४
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६/६/६/६६६६६/६/६६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ६ ७७७७७७७७७७७७७७७७७७७७ ८/८/८/८/८/८/८/८/८/८/८/८/८/८/८८/८/८ ८ ८ ८ ६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६
[TTTTTTTTT |၀၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀ ၅၀)
८६. कर्मचूर्ण-तप -
कर्मचूर्ण-तप की विधि इस प्रकार हैं - "उपवास त्रयं कुर्यादादावन्ते निरन्तरं।
मध्येषष्टिमितान्कुर्यादुपवासाश्च सान्तरान्।।१।। चारों (घाती) कर्मों का क्षय करने के लिए जो तप किया जाता है, उसे कर्मचूर-तप कहते हैं। इस तप में सर्वप्रथम निरन्तर तीन उपवास करके पारणा करे, तत्पश्चात् एकान्तर एकासनसहित साठ
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