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________________ आचारदिनकर ( खण्ड - ४ ) ७७. अष्टापदपावड़ी - तप - अब अष्टापदपावड़ी - तप की विधि बताते हैं - “अश्विनाष्टानिकास्वेव यथाशक्तितपःक्रमै । विधेयमष्टवर्षाणि तपः अष्टापदः परं । । १ । । " अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिए जो तप किया जाता है, उसे अष्टापदपावड़ी -तप कहते हैं। इस तप में आश्विनसुदी अष्टमी से पूर्णिमा तक के आठ दिनों में यथा-शक्ति उपवास, एकासन आदि तप करे । ( प्रथम ओली में ) परमात्मा के आगे सोने की सीढ़ी बनवाकर रखे तथा उसकी अष्टप्रकारी पूजा करे। इस तरह आठ वर्ष तक आठ सीढ़िया बनाए। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष १ वर्ष सुदी आश्विन सुदी आश्विन आश्विन で ६ १० ११ १२ १३ १२ १३ १२ १३ १२ १३ १२ १३ १२ १३ १२ १३ आश्विन आश्विन सुदी आश्विन आश्विन सुदी आश्विन १४ १५ १४ १५ १४ १५ १४ १५ १४ १५ १४ १५ १४ १५ १४ १५ ए. इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधि से चौबीस - चौबीस विभिन्न जाति के पकवान एवं फल परमात्मा के आगे रखे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप से दुर्लभ मोक्षपद की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है । ७८. मोक्षदण्ड - तप अष्टापदपावड़ी-तप, आगाढ़ ww w w w w w w NNNN Jain Education International で ६ १० ११ ११ 99 ११ ११ 99 ८ 348 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ८ ६ で ८ ६ ८ € १० १० १० १० १० १० ११ १२ १३ अब मोक्षदण्ड - तप की विधि बताते हैं " यावन्मुष्टिप्रमाणं स्याद्गुरुदण्डस्य तावतः । AAAAAAA विदधीतैकान्तराश्चोपवासान् सुसमाहितः । । १ । । " मोक्षदण्ड सम्बन्धी तप को मोक्षदण्ड - तप कहते हैं। इसमें गुरु का दण्ड ( डंडा ) जितनी मुष्टिप्रमाण का होता है, उतने एकान्तर उपवास करे। उपवास के दिन गुरु के दण्ड की चंदन से पूजा करे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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