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आचारदिनकर (खण्ड-४) 347 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि कणिक (आटा), हरड़, धनिया, मेथी, गोंद, नेत्रांजन, सलाई, सात-सात पान-सुपारी आदि रखे। पुत्रवती श्राविका को श्रीफल प्रदान करे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से पुत्र की प्राप्ति होती है। यह
मातर तप आगाढ श्रावकों के करने योग्य । १ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३ ए. आगाढ़-तप है। इस तप
| २ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३] ए.
३ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३/ ए. के यंत्र का न्यास इस
| ४ वर्ष |भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३| ए. प्रकार है -
| ५ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३] ए. | ६ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३/ ए.
| ७ वर्ष भाद्रपद शुक्ल ७/८/६/१०/११/१२/१३] ए. | ७६. सर्वसुखसंपत्ति-तप -
अब सर्वसुखसंपत्ति-तप की विधि बताते हैं - “एकादिवृद्धया तिथिषु, तप एकासनादिकम् । _ विधेयं सर्वसंपत्ति सुखे, तपसि निश्चितं ।।।
सर्व सुखसंपत्ति का कारण होने से इस तप को सर्वसुखसंपत्ति-तप कहते हैं। इस तप में प्रतिपदा को एक एकासन करे। दूसरे पक्ष में द्वितीया से दो एकासन करे, तीसरे पक्ष में तृतीया से तीन एकासन करे - इस प्रकार क्रमशः बढ़ते-बढ़ते पन्द्रहवें पक्ष में पूर्णिमा से पंद्रह एकासन करे। यदि कारणवश कोई तिथि भूल जाए, तो तप का आरम्भ पुनः करे। इस तरह यह तप १२० दिन में पूरा होता है।
__इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक १२०-१२० विविध फल एवं पकवान चढ़ाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से सुख की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
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सर्वसुख संपत्ति तप, आगाढ, कुल दिन-१२० तिथि प्र.द्वि. तु. च.पं. पं. स. अ. न. द. | ए. द्वा. त्र. च. पू. तप (एकासन) | १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५
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