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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) 346 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि रोहिणी नक्षत्र में किए जाने वाले तप को रोहिणी - तप कहते हैं। अक्षय तृतीया के दिन, अथवा उसके आगे पीछे जब रोहिणी नक्षत्र हो, उस समय वासुपूज्य भगवान की पूजापूर्वक यह तप प्रारम्भ करे । तत्पश्चात् रोहिणी नक्षत्र के आने पर सात वर्ष सात मास तक शक्ति के अनुसार उपवास, आयम्बिल, नीवि आदि तप करे। यदि एक भी रोहिणी नक्षत्र भूल से रह जाए, तो फिर से आरम्भ करे । इस तप के उद्यापन में श्री वासुपूज्य भगवान की प्रतिमा के आगे बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक स्वर्णमय अशोकवृक्ष रखे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से अविधवापन तथा सौभाग्य-सुख की प्राप्ति होती है। यह श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - ७५. मातर- तप रोहिणी तप आगाढ रोहिणी वर्ष ७, मास ७ उपवास अब मातर- तप की विधि बताते हैं " भाद्रस्य शुक्ल पक्षे तु प्रारम्भ सप्तमीं तिथिं । त्रयोदश्यन्तमाधेयं तपो मातरिसंज्ञकं । । १ । ।“ तीर्थंकर भगवंतों की माता की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, उसे मातर - तप ( मातृतप) कहते हैं । इसे भाद्रपद सुदी ( शुक्ल पक्ष ) सप्तमी के दिन प्रारम्भ कर सुदी ( शुक्ल पक्ष ) त्रयोदशी तक दूध, दही, घी, दही-भात, क्षीर, लापसी और घेवर या मालपुए द्वारा जिनमाताओं की पूजा करके यथाशक्ति एकभक्त आदि तप करे । इस प्रकार यह तप सात वर्ष तक करे । Jain Education International हर दो-दो वर्ष में इस प्रकार से उद्यापन करे । भाद्रपद सुदी ( शुक्ल पक्ष ) चतुर्दशी के दिन चौबीस - चौबीस मालपुए, दाड़िम आदि विविध जाति के फल, खिचड़ी का पात्र जिनमाताओं के समक्ष रखे । पुत्रवाली चौबीस श्राविकाओं को वस्त्र, अंगराग, ताम्बूल आदि प्रदान करे । तत्पश्चात् सातवें वर्ष के उद्यापन में जिनमाता के आगे सप्तमी के दिन तेल, अष्टमी को घी, नवमी को पकवान, दशमी को गाय का दूध, एकादशी को दही, द्वादशी को गुड़, त्रयोदशी को खिचड़ी, बड़ी www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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