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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) ३८. समवसरण - तप " श्रावणमथ भाद्रपदं कृष्ण प्रतिपदमिहातिदतां नीत्वा । षोडशदिनानि कार्यं वर्ष चतुष्कं स्वशक्ति । । १ । । " समवसरण की आराधना के लिए यह तप किया जाता है । इस तप को श्रावण वदि (कृष्ण पक्ष ) प्रतिपदा या भाद्रपद वदि (कृष्ण पक्ष ) प्रतिपदा को प्रारम्भ कर अपनी शक्ति के अनुसार सोलह दिन तक बियासन या एकभक्त ( एकासन) करे एवं नित्य समवसरण की पूजा करे । इस प्रकार चार वर्ष तक करे | इस तप के उद्यापन में बृहत्स्ना विधि से समवसरण की पूजा कर छः विकृतियों से युक्त वस्तुओं का थाल रखे । साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से साक्षात् तीर्थंकर देव के दर्शन होते हैं । यह तप साधुओं एवं श्रावकों दोनों को करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है १ - ३ ४ समवसरण तप भाद्रपद वदि (कृष्ण पक्ष ) प्रतिपदा, अथवा श्रावण वदि ( कृष्ण पक्ष ) प्रतिपदा से वर्ष तिथि कृ. कृ. कृ. कृ. कृ. कृ. १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ६ १० भाद्रपद उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. श्रावण २ " " उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. -""- उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. 319 ३६. द्वितीय समवसरण - तप प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि - - ४०. एकादशगणधर तप -"-"- |उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. Jain Education International कृ. कृ. कृ. कृ. कृ. कृ. कृ. शु. १३ १४ १५ १ ११ १२ उ. उ. उ. उ. उ. उ. अब द्वितीय समवसरण - तप की विधि बताते हैं उ. उ. उ. उ. - For Private & Personal Use Only उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी से लेकर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तक शक्ति के अनुसार यह तप करे। शेष विधि पूर्ववत् है दोनों समवसरण - तप की विधि बताई गई है। इस प्रकार उ. उ. उ. उ. - “चरमजिनस्यैकादश शिष्या गणधारिणस्तदर्थं च । प्रत्येकमनशनान्यथा चाम्लान्यथा विदध्याच्च । । १ । । “ www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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