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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 305 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि उपवास करके पारणा करे। इसके बाद दो उपवास करके पारणा, फिर तीन उपवास करके पारणा करे। ___ इसके पश्चात् दाडिम के निमित्त आठ बार निरन्तर तीन-तीन उपवास (अष्टभक्त) करके पारणा करे। तत्पश्चात् एक उपवास पर पारणा, फिर दो उपवास पर पारणा करे। इस प्रकार अनुक्रम से निरन्तर सोलह उपवास करने पर एक लता होती है। तत्पश्चात् पदक में चौंतीस तेले (अष्टभक्त) होते हैं। इसके बाद पश्चानुपूर्वी से, अर्थात् सोलह उपवास करके पारणा, फिर पन्द्रह उपवास करके पारणा - इस प्रकार उतरते-उतरते एक उपवास करके पारणा करे। फिर दाडिम के निमित्त आठ अष्टभक्त (तेले) करे, फिर तेला, बेला एवं उपवास करे। ऐसा करने से दूसरी लता पूरी होती है। इस तप में पारणे के कुल दिन अट्ठासी होते हैं। इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्रपूजा करके मूल्यवान् विविध प्रकार के निर्मल रत्नों की माला प्रभु के गले में पहनाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप को करने से विविध प्रकार की लक्ष्मी मिलती है। यह तप यति एवं श्रावक - दोनों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार २५. लघुसिंह निःक्रीडित तप - ___अब लघुसिंह निःक्रीडित तप की विधि बताते है - गच्छन् सिंहो यथा नित्यं पश्चाद्भागं विलोकयेत्। सिंह निष्क्रीडिताख्यं च तथा तप उदाहृतम् ।।१।। एकद्व्येकत्रियुग्मैर्युगगुणविशिखैर्वेदषट् पंचताक्ष्यः । षट्कुंभाश्वैर्निधानाष्टनिधिहयगजैः षट्हयैः पंचषडभिः।।२।। वेदैर्वाणैयुगद्वित्रिशशिभुजकुभिश्चोपवासैश्च मध्ये। कुर्वाणानां समन्तादशनमिति तपः सिंह निष्क्रीडितं स्यात्।। जैसे सिंह चलते-चलते पीछे का भाग देखता है, उसी प्रकार से उपवास करते हुए सिंह निष्क्रीडित तप किया जाता है। इसमें सर्वप्रथम एक उपवास कर पारणा किया जाता है इसी प्रकार दो उपवास पारणा, पुनः एक उपवास कर पारणा, तीन उपवास कर पारणा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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