SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ orml आचारदिनकर (खण्ड-४) 304 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि करके पारणा करे, फिर एक उपवास करके पारणा करे - इस प्रकार उतरते या घटते क्रम से एक उपवास करके पारणा करे। इस तप के उद्यापन में विधिपूर्वक जिनप्रतिमा के गले में मोटे-मोटे मोतियों की माला पहनाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से विविध प्रकार के गुणों की श्रेणी प्राप्त होती है। यह साधुओं एवं श्रावकों - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है२४. रत्नावली-तप - अब रत्नावली-तप की विधि बताते ३३३ سه | سه | سه | سه | سه اسد سه | سه له سه سه سد نه | سه سه ३३३ पा. | पा. पा. पा. । GKalam ६ १६. काहलादाडिमों, रत्नावली तप में उ. दिन ४३४ पारणा दिन ८८ आगाढ पा. बाबावादबायाबाबाबाबादाबाबादाबा पा. पा. १० पा. पा. ११ १२ ११ १२ १३ पा. १३ पा. १४ १४ उ.| १५ १५ | पा. १६ पा. लता - २ लता - १ "काहलिका दाडिमकं लता तरल एव च। अन्य लता दाडिमकं काहलि चेति । च क्रमात् ।।१।। एकद्वित्र्युपवासैः सः काहले दाडिमे । पुनः। तरलश्चाष्टममथो रत्नावल्यां लतेवत् ।।२।। ' एकद्वित्र्युपवासतो ह्युंभ इमे संपादिते काहले, अष्टाष्टाष्टम संपदा विरचयेद्युक्त्या पुन डिमे। ___ एकाद्यैः खलु षोडशान्तगणितैः श्रेणीद्वयं च क्रमातू, पूर्ण स्यात्तरलोष्ठमैरपि चतुर्विशन्मितैनिर्मलैः ।।३।।.. गुणरूप रत्नों की आवली होने से यह तप रत्नावली कहलाता है। इसमें प्रथम काहलिका के निमित्त एक سه | له سه سه | سه | سه نته | २२ سه سه | سه سه سه [ سه | سه | سه | سه له سه له سه ३ | سدا سدا سد Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy