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________________ उ. | १ पा. पा. ૨ पा. उ. . १ उ. - पा. पा. उ. आचारदिनकर (खण्ड-४) 306 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तत्पश्चात् दो उपवास कर पारणा, चार उपवास कर पारणा, तीन उपवास कर पारणा क्रमशः पाँच, चार, छह, पाँच, सात, छह, आठ, सात, नौ, आठ - इस प्रकार उपवास करके पारणा किया जाता हैं। तत्पश्चात् पश्चानुपूर्वी से उपवास करें | उ. | अर्थात् पहले नौ उपवास फिर सात फिर । - आठ उसके बाद क्रमशः छह, सात, | - पा. पाँच, छह, चार, पाँच, तीन, चार, दो, तीन, एक, दो और फिर एक उपवास करके पारणा करें। इस प्रकार इस तप | उ. | ३ । - पा. में १५४ दिन उपवास और ३३ दिन पारणे के आते हैं। - पा. इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्र विधि से परमात्मा की पूजा करें। उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, नैवेद्य एवं फल चढ़ायें। संघ पूजा तथा साधर्मिक वात्सल्य करें। इस तप के करने से कर्म क्षय होते हैं। यह तप यतिओं एवं श्रावकों दोनो के करने योग्य आगाढ तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार पा. उ. . २ । उ. पा. उ. उ. पा. उ. - ३ उ. ३ पा. पा. उ.. ५ | उ. पा. - उ. आगाढ, लघुसिंह निष्क्रीडित तप दिन १५४, पारण दिन ३३, कुल दिन १८७ ४ | पा. पा. उ. उ. ६ पा. पा. उ. ५ ५ । - | पा. पा. ७ उ. । पा. पा. पा | ६ | उ. । पा. पा. ८ पा. पा. २६. बृहत्सिंहनिष्क्रीड़ित-तप - अब बृहत्सिंहनिष्क्रीड़ित-तप की विधि बताते है - ___ “एकद्रव्येयकपाटयोनियमलैर्वेदत्रिबाणब्धिभिः, षट्पंचाश्वरसाष्टसप्तनवभिर्नागेश्च दिग्नन्दकः। रूद्राशारविभद्र ........ विषुधैर्मार्तडमन्वन्वितै, उ... ७ ७ पा. उ. ६ | उ. | - पा. पा. - 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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