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________________ आचारदिनकर (खण्ड- -8) २२. कनकावली - तप अब कनकावली - तप की विधि बताते हैं “तपसः कनकावल्याः, काहलादाडिमे अपि । लता च पदकं चान्त्यलता दाडिमकाहले । ।१ ।। एक द्वित्र्युपवासतः प्रगुणितं, संपूरिते काहले, तत्राष्टाष्टमितैश्च षष्ठकरणैः संपादयेद्दाडिमे । एकाद्यैः खलु षोडशांशगणितैः श्रेणी उभे युक्तितः, षष्ठैस्तैः कनकावलौ किल चतुस्त्रिंशन्मितैर्नायकः ।।२ ।।" तपस्वियों के हृदय पर शोभायमान होने से यह कनकावली - तप कहलाता है । इसमें प्रथम उपवास कर पारणा करे, तत्पश्चात् निरन्तर दो उपवास करके पारणा करे, फिर निरन्तर तीन उपवास कर पारणा करे । इस तरह एक काहलिका पूर्ण होती है । इसके बाद आठ निरन्तर दो उपवास (षष्ठभक्त) करे, जिससे एक दाड़िम पूर्ण होती है। उसके बाद एक उपवास करके पारणा करे, दो उपवास कर पारणा करे, तीन उपवास कर पारणा करे इस प्रकार बढ़ते-बढ़ते सोलह उपवास कर पारणा करे। ऐसा करने से हार की एक लता पूर्ण होती है । इसके पश्चात् चौंतीस निरन्तर दो उपवास ( षष्ठभक्त) करने से उस लता के नीचे पदक सम्पूर्ण होता है । बाद में सोलह उपवास कर पारणा करे । पंद्रह उपवास कर पारणा करे, चौदह उपवास कर पारणा करे इस तरह घटाते - घटाते एक उपवास कर पारणा करे। ऐसा करने से हार की दूसरी लता पूरी होती है। इसके बाद आठ षष्ठभक्त (बेले) करने से उसकी ऊपर की दाड़िम पूरी होती है । फिर निरन्तर तीन उपवास ( अष्टभक्त - तेला) करके पारणा करे, तत्पश्चात् षष्ठभक्त (बेले) करके पारणा करे और उसके बाद एक उपवास कर पारणा करे। इससे ऊपर की दूसरी काहलिका पूरी होती है । यहाँ जो उपवास, छट्ठ और अट्ठम लिखे हैं, उनका पारणा कर तुरन्त दूसरे दिन ही उपवास आदि करे, परन्तु बीच में बाधा नहीं डाले । इस तप में कुल पारणे अट्ठासी होते हैं तथा तीन सौ चौरासी उपवास होते हैं । पारणे में पहली श्रेणी में विकृति सहित इच्छित भोजन करे, दूसरी श्रेणी में निर्विकृति (नीवि), तीसरी श्रेणी में अलेपद्रव्य तथा चौथी श्रेणी में आयम्बिल करे । I www.jainelibrary.org Jain Education International - 301 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि For Private & Personal Use Only --
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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