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आचारदिनकर (खण्ड-४)
302 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करके, उपवास की संख्या के अनुसार स्वर्णटंक की माला बनवाकर जिनप्रतिमा के गले में पहनाए तथा छहों विगयों से युक्त पकवान आदि चढ़ाए। साधुओं को वस्त्र, पात्र एवं अन्न का दान करे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से भोग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह मुनियों एवं श्रावकों
| उ. ७ - दोनों को करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार
३
। पा.
पा.
पा.
पा.
कनकावली-तप में कुल उपवास - ३८४, पारणा दिन - ८८ आगाढ़
७
पा.
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है
।
१०
८ पा. ६ । पा. १० । पा.
| पा. १२ | पा. १३ । पा. १४ पा.
११
१२ | उ. १३ ।
१४ | १५ उ. १६ | पारणांतरित
१५ । पा. १६ । पा.
पा.
२३. मुक्तावली-तप -
___ अब मुक्तावली-तप की विधि बताते हैं -
"मुक्तावल्यां चतुर्थादिषोडशाद्यावलीद्वयम्।
पूर्वानुपूर्व्यापश्चानुपूर्व्याज्ञेयं यथाक्रम ।।१।।
एकद्वेयेकगुणैकवेदवसुधाबाणैकषड्भूमिभिः, सप्तैकाष्टमहीनवैकदशभिर्भूरूद्रभूभानुभिः।
भूविश्वैः शशिमन्विला तिथिधराविद्या सुरीभिमितै
रेतद्व्युत्क्रमणोपवासगणितैर्मुक्तावली जायते।।२।।"
तपस्वियों को गले में आभूषणरूप निर्मल मुक्तावली सदृश होने से यह तप मुक्तावली कहलाता है।
२२|२ |२२२२२ २ २ |२|२|२|२|२ २|२ २|२|२| २/२
२|२|२|२ २|२|२
पा.
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