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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 300 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तपकर्म निर्जल ही था। प्रव्रज्या के प्रथम दिन से लेकर भगवान की छद्मस्थपर्याय १२ वर्ष ६ महीने और पन्द्रह दिन रही। उसके बाद वीर परमात्मा ने केवलज्ञान प्राप्त किया। मूलग्रन्थ में पुनः इसी विषय की चर्चा करते हुए (प्राकृत एवं संस्कृत में) महावीरस्वामी द्वारा किए गए तपों का उल्लेख किया गया है। मुनि या श्रावक यह तप यथाशक्ति एकान्तर उपवास से करे। शक्ति न हो, तो इन तपों में से कोई भी तप यथाशक्ति तथा काल के अनुसार करे। इस तप के उद्यापन में महावीरप्रभु की बृहत्स्नात्रविधि से अष्टप्रकारी पूजा करे। छहों विगयों से युक्त पकवान एवं फल आदि परमात्मा के आगे रखे। साधर्मिक-वात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से तीर्थकर-नामकर्म का बंध होता है। यह तप साधु एवं श्रावक - दोनों को करने योग्य अनागाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - ७२ पक्ष क्षमण १२ | सर्व संख्या श्री महावीर-तप, अनागाढ़ । उ. १०८० उ. | ६० उ. १२० उ. | ३४८ | उ. ३६० उ. | ६० उ. १२० उ.| १६ | उ. ४५ | उ.६० उ. १२० उ. १ | उ. ४५ | उ. ६० उ. १२० (कुल दिन) उ.७५ | उ.६०/उ. १२०/ १५ वर्ष, उ. ७५ | उ. १२० उ. १८० १२ मास, उ. ६० उ. |१२०/उ. १७५, ६ दिन, उ.] ६० उ. |१२०/उ. ४५८/१५ एकान्तर उ. ६०उ. |१२०/उ.३६ पूर्यते इति। २२६ मास क्षमण मास १.१५ मास २.१५ द्विमासिकी त्रैमासिकी छट्ठ भक्त चातुर्मासिकी अट्ठम भक्त षण्मासिकी ५ दिन कम षण्मासिकी भद्रप्रतिमाएँ १२ १ १६ व्रत दिन ३४६ पारणा सर्व संख्या तप : १२ वर्ष ६ मास १५ दिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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