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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 268 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि भाषित हैं तथा कुछ तप के ऐहिक फल के इच्छुकों द्वारा आचरित हैं। इस प्रकार तप-विधि तीन प्रकार की है। इन तपों में योगोपधान मुख्य है तथा इसकी विधि केवली द्वारा भाषित है। जिसमें कल्याणक, पुंडरीक आदि तप मुख्य हैं, वे तप गीतार्थ मुनियों द्वारा भाषित हैं तथा रोहिणी और कल्पवृक्ष आदि जो तप हैं, वे तप ऐहिक या लौकिक फल की अपेक्षा वाले तप हैं। इस प्रकार सभी विद्वानों ने एकमत होकर तपस्याओं का यह स्वरूप बताया है। साधु-साध्वी तथा ऐसे श्रावक जो प्रतिमाओं का वहन कर चुके हैं, उपधान कर चुके हैं तथा जिन्होंने सम्यक्त्व का धारण किया है, उनको ऐहिक फल की अपेक्षा वाली तपस्याएँ नही करनी चाहिए। गृहस्थों को योगोद्वहन-तप नही करना चाहिए, किन्तु मुनियों को इसे अवश्य करना चाहिए। शेष सभी तप शांत एवं गुणवान् श्रावक एवं श्राविकाओं को भी करने चाहिए। शांत, अल्पनिद्रावाले, अल्पाहारी, कामनारहित, कषायवर्जित, धैर्यवान् अन्य की निंदा नही करने वाले, गुरुजनों की शुश्रुषा में तत्पर, कर्मक्षय करने के अर्थी, प्रायःकर राग एवं द्वेष से रहित, दयालु, विनयी, इहलोक एवं परलोक की इच्छा से रहित, क्षमावान्, निरोगी और उत्कंठारहित - ऐसे जीव तप करने के योग्य कहे गए हैं। प्रतिष्ठा और दीक्षा में जो काल त्याज्य बताया गया है, वही काल छ:मासी तप, वर्षीतप तथा एक मास से अधिक समय वाले तप के प्रांरभ करने में भी त्याज्य बताया गया है। शुभ मुहूर्त में तप का प्रारंभ करने के बाद दिवस, पक्ष, मास या वर्ष अशुभ आ जाए, तो उसमे कोई दोष नही है। प्रथम विहार, तप, नंदी और आलोचना में मृदु, ध्रुव, चर, क्षिप्र संज्ञा वाले नक्षत्र तथा मंगल और शनिवार के सिवाय शेष वार शुभ माने गए हैं। तप करते समय बीच में यदि पर्व-तिथि का तप आता हो, तो उस बड़े तप को न करके उस पर्व-तिथि के तप को अवश्य करना चाहिए और फिर पूर्व से आराधित उस बड़े तप को भी करना चाहिए, क्योंकि सत्पुरुष का नियम दुर्लघ्य होता है। एक तप के मध्य कोई दूसरा तप भी करणीय हो, तो ऐसी स्थिति में जो तप बड़ा हो, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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