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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 269 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि वह करना चाहिए तथा शेष रहा हुआ लघु तप उसके बाद करना चाहिए, अर्थात् कोई तप एकासन से करना प्रारंभ किया हो और उसमें किसी दूसरे तप का उपवास आ जाए, तो उस समय उपवास करना चाहिए तथा एकासन बाद में करना चाहिए। अनाभोगादि कारणों से यदि तप के मध्य में तप का भंग हुआ हो, तो उसकी उसी तप से आलोचना कर लेनी चाहिए और बाद में वह आलोचना सम्बन्धी तप करना चाहिए । अनुक्रम वाले तप में प्रायः कर के तिथियों के क्रम को नहीं गिनना चाहिए, अर्थात् तिथि के दिन खाना पड़े और बिना तिथि के उपवासादि करना पड़े, तो उसे उसी प्रकार से करना चाहिए । तिथि की मुख्यता वाले तप में सूर्योदय के समय जो तिथि होती है, वह तिथि लेना श्रेष्ठ है, किन्तु तिथि का क्षय हो, तो पूर्व दिवस में और तिथि की वृद्धि हो, तो दूसरे वृद्धि के दिन उस-उस तिथि का तपकर्म करना चाहिए - ऐसा श्री जिनेश्वर भगवान् ने कहा है । कालवृद्धि' रसत्याग, वृत्तिसंक्षेप, औनोदर्य, अनशन और कायक्लेश इस प्रकार इन छः प्रकार के तपों में उत्तरोत्तर वृद्धि से अधिक - अधिक तप जानना चाहिए, अर्थात् क्रमशः एक-दूसरे से उत्तरोत्तर से अधिक तप से युक्त समझना चाहिए । ( यह कालवृद्धि नामक तप विशेष रूप से बताया गया हैं और संलीनता - तप का कालक्लेश-तप में समावेश किया गया है- इस प्रकार ग्रंथकार ने बाह्यतप के भेदों की ६ की संख्या को कायम रखा है ।) नवकारसी, पौरुषी, सार्द्धपौरुषी, पूर्वार्द्ध और अपराहून इन तपों में पूर्व पूर्व की अपेक्षा उत्तर- उत्तर तपकाल की अपेक्षा उत्कृष्ट जानना चाहिए । संख्या वाली विकृति, अर्थात् एक, दो विगई का त्याग, नीवि, आयम्बिल और एक सिक्थ ( मात्र एक दाना खाना) - मूल पाठ में कालवृद्धिः ऐसा पाठ है, किन्तु हमारी दृष्टि में यह उचित पाठ नही है । कायक्लेश पाठ होना चाहिए, किन्तु आगे पुनः कायक्लेश- तप का उल्लेख किया गया है, अतः कुछ स्पष्ट नहीं है कि कालवृद्धि नामक तप का उल्लेख यहाँ किस दृष्टि से किया गया है I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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