SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 265 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि प्रकार से परीक्षण न किया हो, उसकी प्रतिलेखना न करने रूप अतिचारों से पौषव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो। सचित्त - निक्षेप, सचित्त-विधान, कालातिक्रम-दान, मात्सर्य, पर - व्यपदेशरूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने अतिथिसंविभाग - गुणव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो । पूरे दिन और रात में मैंने जो दुष्चिंतन किया हो, दुष्वचन बोला हो, दुष्चेष्टा की हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो । इस प्रकार बोलकर निम्न पाठ बो संसार में चार मंगल हैं सिद्ध भगवान् मंगल हैं प्ररूपित धर्म मंगल है | १. अरिहंत भगवान् मंगल हैं २. ३. साधु महाराज मंगल हैं एवं ४. सर्वज्ञ Jain Education International - | संसार में चार उत्तम, अर्थात् सर्वश्रेष्ठ हैं १. अरिहंत भगवान् लोक में उत्तम हैं २. सिद्ध भगवान् लोक में उत्तम हैं ३. साधुजन लोक में उत्तम हैं एवं ४. सर्वज्ञ प्ररूपित धर्मलोक में उत्तम हैं मैं चार की शरण स्वीकार करता हूँ - १. अरिहंतों की शरण स्वीकार करता हूँ २. सिद्धों की शरण स्वीकार करता हूँ ३. साधुओं की शरण स्वीकार करता हूँ एवं ४. केवली प्ररूपित धर्म की शरण स्वीकार करता हूँ । तत्पश्चात् जिनस्तोत्र का पाठ करे । अखिल विश्व का कल्याण हो, सभी प्राणियों के परोपकार में तत्पर बन व्याधि - दुःख दौर्मनस्यादि का नाश हो और सर्वत्र मनुष्य सुख को प्राप्त करे इस प्रकार की कामना करे । तत्पश्चात् परमेष्ठीमंत्र बोले । मन, वचन एवं काया के योग को शुभध्यान में केन्द्रित करके शुभ आवश्यक कार्य द्वारा सामायिक को पूर्ण करे। अतिचारों से रहित मेरे द्वारा की गई सामायिक अनुत्तर है, अर्हत् एवं गुरु के प्रसाद से पुनः क्षण-क्षण में मुझे इसकी प्राप्ति हो । “पुनरस्तु सामायिकं " यह सामायिक पारने का श्लोक है। तत्पश्चात् प्रत्यक्ष रूप से या मन से गुरुवन्दन करे । - इस प्रकार नृप, मंत्री तथा कार्य में व्यग्र बने हुए गृहस्थों के प्रतिक्रमण की यह संक्षिप्त प्रतिक्रमण - विधि संपूर्ण होती है 1 यदि कभी किसी प्रज्ञावान् को सामायिक एवं प्रत्याख्यान - दण्डक का मुखपाठ न आता हो, तो उसे मन से ग्रहण करे । सामायिक एवं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy