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आचारदिनकर (खण्ड-४)
264 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि मेरा वह दोष मिथ्या हो। चोर द्वारा लाई गई वस्तु रखने, चोर को सहायता करने, माल में मिलावट करके देने, राज्य के विरूद्ध कर्म करने एवं झूठे माप-तौल का उपयोग करने रूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने अदत्तादान-अणुव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। इत्वरगृहीतागमन, अपरिगृहीतागमन, परविवाहकरण, तीव्र अनुराग एवं अनंगक्रीड़ारूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने मैथुन-अणुव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। धन, धान्य, सोना-चाँदी, बर्तन, क्षेत्रवास्तु, द्विपद (नौकर), चतुष्पद (गाय, भैंस आदि) की निश्चिंत संख्याओं का उल्लंघन करके यदि मैंने परिग्रह-अणुव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। ऊर्ध्व, अधो, तिर्यक् दिशाओं में जाने-आने के परिमाण का अतिक्रमण करने, क्षेत्र-वृद्धि करने एवं दिशा सम्बन्धी नियम के विस्मृत होने रूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने दिशा-परिमाण-व्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। सचित्त, सचित्त-प्रतिबद्ध-आहार, सचित्तमिश्र, संधान (बहुत से मादक द्रव्यों से निर्मित) एवं अपक्व आहार - इन अतिचारों द्वारा तथा अंगारवन, शकट, भाटक, स्फोटककर्म ; दांत, लाख, रस, केश एवं विष सम्बन्धी वाणिज्य ; यंत्र-पीलनकर्म, निर्लाछनकर्म, दवदानकर्म, जलशोषणकर्म, असतीपोषणकर्म - इन पन्द्रह कर्मादानों द्वारा भोगोपभोग-गुणव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। संयुक्ताधिकरण, भोगोतिरिक्तता, मौखर्य, कंदर्प, कौत्कुच्य रूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने अनर्थदण्डविरमण- व्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो। मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान, अनवस्था एवं स्मृतिविहीनत्वरूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने सामायिक-शिक्षाव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो। आनयन-प्रयोग, प्रेष्य-प्रयोग, शब्दानुपात, रूपानुपात एवं पुद्गलक्षेपरूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने देशावगासिक-शिक्षाव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा दोष मिथ्या हो। अनादर (अनवस्था) सम्यक् प्रकार से पालन न करना, स्मृतिविहीनत्व, सम्यक् प्रकार से स्थंडिलभूमि एवं संस्तारक का सम्यक्
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