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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 263 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पज्जुवासामि दुविह." बोलकर शेष सामायिक-दण्डक (पाठ) का उच्चारण करे। तत्पश्चात् शक्रस्तव एवं सम्पूर्ण चतुर्विंशतिस्तव बोले। उसके बाद “धम्मुत्तरं वढउ“ तक श्रुतस्तव बोले तथा इसी प्रकार "सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु" तक सिद्धस्तव बोले। तत्पश्चात् "अज्ञानतिमिरान्धानां ज्ञानांजनश्लाकया। नेत्रमुन्मीलितं येनतस्मै श्री गुरवेनमः।" __ भावार्थ - जिन्होनें अज्ञानरूपी अंधकार से अंधे लोगों के नेत्र ज्ञानरूपी अंजनशलाका से खोले हैं, ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता Dhco यह श्लोक बोलकर “आयरिय उवज्झाए." की तीन गाथाएँ बोले। तत्पश्चात् इस प्रकार बोले - शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श की लालसा से यदि मैंने क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूपी कषाय किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। यदि मैंने अरिहंतदेव की प्रतिमा को अपवित्र स्थान पर स्थापित किया हो, उनके आसन का उल्लंघन किया हो, उनकी निन्दा की हो, उपहास आदि किया हो, तो वे मुझे क्षमा करें। यदि मैंने गुरु की तेंतीस आशातनारूप अविनय किया हो, तो वे मुझे क्षमा करें। यदि मैंने मिथ्यात्व, हिंसा, मृषा, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, आर्त एवं रौद्रध्यान द्वारा धर्म का लंघन किया हो, तो धर्म मुझे क्षमा करे। अपवित्र स्थान पर पुस्तक आदि रखकर तथा देशकाल आदि का ध्यान रखे बिना अध्ययन करके यदि मैंने ज्ञान की आशातना की हो, तो जिन-आगम मुझे क्षमा प्रदान करें। शंका करके तथा मिथ्यात्व पोषण द्वारा यदि मैंने दर्शन का उल्लंघन किया हो, तो सम्यग्दर्शन मुझे क्षमा प्रदान करें। वध-क्रिया, बंधन-क्रिया, अंगछेदन-क्रिया, अतिभार भरने एवं आहार-पानी में अंतराय करने रूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने प्राणातिपात-अणुव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी मेरा वह दोष मिथ्या हो। मिथ्योपदेश, अभ्याख्यान, कूटलेख (मिथ्यालेख) गलत सलाह देने, एव स्वयं की गुप्त बातों को प्रकट करने रूप अतिचारों द्वारा यदि मैंने मृषावाद अणुव्रत का उल्लंघन किया हो, तो तत्सम्बन्धी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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