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आचारदिनकर (खण्ड-४)
२. द्रव्य
प्रासुक भक्ष्य आहार को द्रव्य कहते हैं ।
३. विकृति - पूर्व में कहे गए अनुसार विकृति दस प्रकार की होती है । अश्व आदि को वाहन कहते हैं ।
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४. वाहन
६. वस्त्र
५. ताम्बूल सुपारी, पत्र (पान) आदि को ताम्बूल कहते हैं । जिनसे शरीर का आच्छादन हो, उन्हें वस्त्र कहते हैं । ७. कुसुम - पुष्पों की माला आदि को कुसुम में गृहीत किया गया है ८. आसन वेत्रासन एवं पाट आदि को आसन कहते हैं ।
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262 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
६. शयन खाट, तकिया आदि जो सोने के काम में आते हैं ।
१०. विलेपन चन्दन, कस्तूरी आदि जिनका लेप किया जाता है,
उन्हें विलेपन कहते हैं ।
११. ब्रह्मचर्य ब्रह्मव्रत का पालन करना ब्रह्मचर्य कहलाता है ।
१२. दिशा - दिशा में जाने-आने का परिमाण करना ।
१३. स्नान तेल की मालिश करके जल से स्नान करने का परिमाण
करना ।
१४. भक्त
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अन्न वगैरह का परिमाण करना ।
गृहस्थ प्रतिदिन इन चौदह नियमों से सम्बन्धित वस्तुओं का परिमाण करते हैं ।
“वोसिरामि एवं वोसिरइ " - ये दोनों त्यागवाचक शब्द हैं। आवश्यक - विधि में प्रत्याख्यान की यह विधि बताई गई है । उपर्युक्त प्रत्याख्यानों से सम्बन्धित शब्दों की व्याख्या पूर्ववत् ही है, अर्थात् उनकी व्याख्या पूर्व में किए गए अनुसार ही है ।
नृप, मंत्री, परसेवक एवं बहुव्यवसायी आदि की आवश्यक की विधि इस प्रकार है
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सर्व वस्त्र एवं अलंकारों से युक्त होकर तथा शुद्धि करके देवता के आगे, अथवा पवित्र स्थान पर उत्तरासंग धारण कर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठे। सर्वप्रथम परमेष्ठीमंत्र बोले तत्पश्चात् "पंचमहव्वयजुत्तो पंचविहायारपालणसमत्थो । पंचसमिओ तिगुत्तो छत्तीसगुणो गुरुमज्झ" - गाथा बोले । तत्पश्चात् इच्छाकारेण से लेकर मिच्छामि दुक्कडं तक इरियावहियं का पाठ बोले । उसके बाद " करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जाव आवस्सयं
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