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________________ आचारदिनकर (खण्ड- -४) 238 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि वन्दनकर्म है, अतः उन्ही के आगे करना उचित है, इसलिए स्थापनाचार्य की स्थापना करते हैं । परमेष्ठीमंत्र से स्थापित स्थापनाचार्य में भगवत्कल्पना एवं गुरु की कल्पना करके उसके आगे दोनों की क्रिया करना श्रेयस्कर है । जैसा कि आगम में कहा गया है - श्री जिनेश्वर भगवंत के अभाव में जिस प्रकार श्री जिनेश्वर भगवंत की प्रतिमा का आमंत्रण और सेवा सफल होती है, उसी प्रकार गुरु के अभाव में गुरु के आदेश और दर्शन हेतु स्थापनाचार्य सफल है । जैसे देवता या मंत्र आदि के परोक्ष होने पर भी उनकी उपासना की जाती है, उसी प्रकार गुरु के परोक्ष होने पर भी उनके प्रति विनय एवं सेवा हेतु स्थापनाचार्य की स्थापना करे । इस प्रकार उक्त कारणों से स्थापनाचार्य की स्थापना करते हैं। उसकी परिमाण शुद्धि इस प्रकार है स्थापनाचार्य का परिमाण उत्कृष्टतः चौबीस अंगुल, मध्यमतः बारह अंगुल एवं जघन्यतः मुष्टि के अन्दर आ जाए- इतना होता है । उत्तम देवदार वृक्ष के काष्ठ या रत्नों से निर्मित स्थापनाचार्य को बारह अंगुल दीर्घ देवदार वृक्ष की काष्ठ से निर्मित कालदंड पर आगे रखते हैं। कुछ आचार्यों का कहना है कि स्थापनाचार्य रत्न या शंख के होने चाहिएं - ये उनकी अपनी मान्यता है, अन्य मान्यताओं को भी दोषपूर्ण नहीं मानना चाहिए । इस प्रकार स्थापित स्थापनाचार्य की साधु एवं श्रावक - दोनों समय मुखशुद्धि करके प्रतिलेखना करे । उसके आगे चैत्यवंदन करे । यतियों के लिए दिन-रात में सात चैत्यवंदन करना अनिवार्य है। श्रावकों के लिए भी यही कहा गया है। जैसा कि कहा गया है - साधुओं को अहोरात्र में सात बार चैत्यवंदन करना चाहिए तथा गृहस्थों को तीन, पाँच या सात बार चैत्यवंदन करना चाहिए। यतियों के सात चैत्यवंदन इस प्रकार बताए गए हैं १. ब्रह्ममुहूर्त में निद्रा से उठने पर २. प्राभातिक प्रतिक्रमण के समय ३. चैत्य परिपाटी के समय ४ प्रत्याख्यान पारने हेतु मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करते समय ५. भोजन करने के पश्चात् ६. सांयकालिक - प्रतिक्रमण के समय एवं ७. शयन करते समय । गृहस्थ के लिए भी इसी प्रकार सात चैत्यवंदन बताए गए हैं १. शयन से पूर्व २. जागने पर, अर्थात् प्रातः उठने पर ३. भोजन करने से पूर्व इस Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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