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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) . 237 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि - खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे – “मैं पौषधव्रत को पूर्ण करता हूँ।“ मुखवस्त्रिका को मुख पर लगाकर तथा सिर को भूमि पर रखकर पौषध पारने का निम्न पाठ बोले - भावार्थ - ____सागरचन्द्र एवं कामदेव श्रावक चंद्रावतंसक राजा और सुदर्शन सेठ धन्य हैं, जिनकी पौषध की प्रतिमा जीवन के अंत समय तक अखण्डित रही। जो गर्भावास में भयभीत होता है, वह इस संसार में दुर्लभ महामुनि की भाँति जीवों को अभयदान देकर तथा मणि-सुवर्ण के प्रति ममत्व का त्याग करके पौषध करता है। पौषध करने से शुभभाव आते हैं एवं अशुभभावों का नाश होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। पौषध करने से व्यक्ति की नरक एवं तिर्यंचगति का छेदन होता है - ऐसा जो कहा जाता है, उसमें भी कोई संदेह नहीं है। सामायिक, पौषध अथवा देशावगासिक में जीव का जो समय व्यतीत होता है, वह समय सफल समझना चाहिए। बाकी का समय तो संसारवृद्धि का हेतु है। पौषध करने से चक्रवर्ती के समान वैभव की तथा कालान्तर में मोक्षपद की प्राप्ति होती है। महर्षियों द्वारा पौषध का यह फल बताया है।" __तत्पश्चात् नमस्कारमंत्र बोलकर सामायिकव्रत पूर्ण करने हेतु मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके पूर्ववत् सामायिक पारता है (पूर्ण करता है)। फिर पौषध पूर्ण कर लेने पर निश्चित रूप से साधुओं एवं सत्पुरुषों का अतिथिसंविभाग करे, अर्थात् दान दे। अहोरात्रिक-पौषध की यह विधि बताई गई है। सामायिक की दो घटिका (श्रावक) नमस्कार-जाप, प्रतिक्रमण आदि द्वारा पूर्ण करे। कुछ सामान्यजन सामायिक में पाँच सौ नमस्कारमंत्र का जाप करने के लिए कहते हैं। सामायिक पूर्ण करने के बाद पुनः पुनः सामायिक ग्रहण करना - यह परम्परा है। इस आवश्यक प्रकरण में सामायिक की विधि संपूर्ण होती है। अब चैत्यवंदन की विधि बताते हैं - सर्वप्रथम स्थापनाचार्य की स्थापना करे। वन्दन, प्रतिक्रमण, आलोचना, क्षमापना आदि क्रियाएँ गुरु के आगे करना उचित है, किन्तु चैत्यवंदन अरिहंत भगवान का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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