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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 224 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि होते हैं। ये विकल्प किस प्रकार से होते हैं, उनका विवेचन पुनः मूलग्रन्थ में आगे की तीन गाथाओं के माध्यम से किया गया है। प्रथम कोष्टकत्रय - मन से, वचन से एवं काया से न स्वयं करूंगा न दूसरों से कराऊंगा न करने वालों की अनुमोदना करूंगा। - यह एक भंग है। द्वितीय कोष्टकत्रय - इसमें तीन भंग होते हैं - १. मनवचन-काया से न तो स्वयं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा २. मनवचन-काया से न तो स्वयं करूंगा और न ही करने वालों की अनुमोदना करूंगा ३. मन-वचन-काया से न तो दूसरों से कराऊंगा और न ही करने वालों की अनुमोदना करूंगा। तृतीय कोष्टकत्रय - इसमें तीन भंग होते हैं - १. मनवचन-काया से न तो स्वयं करूंगा २. मन-वचन-काया से न दूसरों से कराऊंगा एवं ३. मन-वचन-काया से न करने वालों की अनुमोदना करूंगा। चतुर्थ कोष्टकत्रय - इसमें तीन भंग होते है - १. मन, वचन से न तो स्वयं करूंगा, न दूसरों से कराऊंगा, न करने वालों की अनुमोदना करूंगा २. मन-वचन-काया से न तो स्वयं करूंगा और न करने वालों की अनुमोदना करूंगा ३. वचन एवं काया से न तो स्वयं करूंगा, न दूसरों से करवाऊंगा और न ही करने वालों की अनुमोदना करूंगा। पंचम कोष्टकत्रय - इसमें नौ भंग होते है - १. मन-वचन से स्वयं करूंगा और दूसरों से करवाऊंगा २. मन-वचन से स्वयं करूंगा और करने वालों की अनुमोदना करूंगा ३. मन-वचन से दूसरों से करवाऊंगा ४. मन एवं काया से स्वयं करूंगा और दूसरों से करवाऊंगा ५. मन एवं काया से स्वयं करूंगा और करने वालों की अनुमोदना करूंगा ६. मन एवं काया से दूसरों से करवाऊंगा और करने वालों की अनुमोदना करूंगा ७. वचन एवं काया से स्वयं करूंगा और दूसरों से करवाऊंगा ८. वचन एवं काया से स्वयं करूंगा और करने वालों की अनुमोदना करूंगा ६. वचन एवं काया से दूसरों से करवाऊंगा और करने वालों की अनुमोदना करूंगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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