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आचारदिनकर ( खण्ड - ४)
223 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
आराधित। इनसे प्रत्याख्यान विशुद्ध होता है । इसके लिए प्रयत्न करना चाहिए | इनकी व्याख्या इस प्रकार है.
उचित काल में विधिपूर्वक ग्रहण किया गया प्रत्याख्यान स्पर्शित कहलाता है। सतत उपयोग और सतर्कतापूर्वक पालन किया गया प्रत्याख्यान पालित कहलाता है। प्रत्याख्यान पूर्ण होने पर गुरु द्वारा प्रदत्त शेष भोजन करना शोभित - प्रत्याख्यान है । प्रत्याख्यान का समय पूर्ण हो जाने पर भी कुछ समयपर्यन्त प्रत्याख्यान में रहना तीरितप्रत्याख्यान है । गोचरी के समय किए हुए प्रत्याख्यान की स्मृतिपूर्वक आहार करना कीर्तित - प्रत्याख्यान है । स्पर्शित आदि छः कारणों द्वारा पूर्ण किया गया प्रत्याख्यान आराधित कहलाता है । प्रत्याख्यान का फल इस प्रकार है। प्रत्याख्यान का फल दो प्रकार का बताया गया है १. इहलोक सम्बन्धी धम्मिलकुमार आदि का तथा परलोक सम्बन्धी दामन आदि । प्रत्याख्यान से कर्म के आने का द्वारबंध होता है, उससे तृष्णा का छेदन होता है, तृष्णा के छेद से मनुष्यों को अतुल उपशम प्रकट होता है, जिससे उसका प्रत्याख्यान शुद्ध होता है, शुद्ध प्रत्याख्यान से १. चारित्रधर्म निश्चय से प्रकट होता है २. पुराने कर्मों का विवेक (निर्जरा) होता है ३. अपूर्वकरण गुण प्रकट होता है, जिससे केवल ज्ञान होता है और केवलज्ञान से शाश्वत सुख के स्थानरूप ४. मोक्ष होता है ।
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अब देशविरति एवं सर्वविरति आदि व्रतोच्चार के सभी प्रत्याख्यान बताते हैं इसके एक सौ सैंतालीस से अधिक भंग ( विकल्प ) हैं । वे इस प्रकार हैं
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१. मन २. वचन ३. काया ४. मन-वचन ५. मन काया
६. वचन - काय एवं ७. मन-वचन-काया ये सात विकल्प योग के होते हैं । इसी तरह से १. करना २. कराना ३. अनुमोदन करना ४. करना और कराना ५. करना और अनुमोदन करना ६. कराना और अनुमोदना करना एवं ७. करना, कराना और अनुमोदना करना इस प्रकार इन सातों का सात से गुणा करने पर उनपचास विकल्प होते हैं। इनसे भूत, वर्तमान एवं भविष्य - इन तीनों कालों की अपेक्षा से गुणा करने पर एक सौ सैंतालीस विकल्प
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