SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) एकस्थान-प्रत्याख्यानसूत्र एकस्थान- प्रत्याख्यान में सात आगार होते हैं । एकस्थानसूत्र इस प्रकार है - “एक्कासणं एगट्ठाणं पच्चक्खामि, चउविहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।" भावार्थ - 215 २. एकासनरूप एकस्थानव्रत को ग्रहण करता हूँ। अशन, पान, खादिम, स्वादिम इन चारों आहारों का १. अनाभोग सहसाकार ३. सागारिकाकार ४. गुर्वभ्युत्थान ५. पारिष्ठापनिकाकार ६. महत्तराकार एवं ७. सर्वसमाधिप्रत्ययाकार इन सातों अपवाद ( आगारों) के सिवाय पूर्णतया त्याग करता हूँ । - प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इस प्रत्याख्यान में आकुंचन-प्रसारण आकार नहीं होता है - आयम्बिलसूत्र इस सूत्र में आठ अपवाद ( आगार ) होते हैं। आयम्बिल का सूत्र इस प्रकार है " आयंबिलं पच्चक्खामि अन्नत्थणाभोगेणं Jain Education International - लेवालेवेणं गिहत्थसंसट्टेणं उक्खित्तविवेगेणं महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।" भावार्थ - आयंबिल, अर्थात् आचाम्लतप ग्रहण करता हूँ। अनाभोग, सहसाकार, लेपालेप, उत्क्षिप्तविवेक, गृहस्थसंसृष्ट, पारिष्ठापनिकाकार, महत्तराकार, सर्वसमाधिप्रत्ययाकार उक्त आठ अपवाद (आकार), अर्थात् अपवादों के अतिरिक्त अनाचाम्ल - आहार का त्याग करता हूँ । विशिष्टार्थ - सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं लेवालेवेणं - लेप का तात्पर्य दधि, घृत, तेल आदि से पहले लिप्त होना है । अलेप का अर्थ है, बाद में पोंछकर अलिप्त कर देना, किन्तु पोंछ देने पर भी विकृति का कुछ अंश लिप्त रहा ही होता है अतः आचाम्ल में लेपालेप का अपवाद (आकार) रखा जाता है 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy