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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि कहलाते हैं। उत्तरगुण - प्रत्याख्यान भी दो प्रकार के होते हैं १. आंशिक (देश) २. सर्व । साधुओं के सर्व उत्तरगुण- प्रत्याख्यान अनेक प्रकार के होते हैं जैसे - पिंडविशुद्धि, समिति, भावना आदि। साधु के उत्तरगुण प्रत्याख्यान भी दो प्रकार के होते हैं १. प्रतिमारूप एवं २. अभिग्रह | श्रावकों के देश - उत्तरगुण - प्रत्याख्यान में तीन गुणव्रत एवं चार शिक्षाव्रत आते हैं। इन दोनों को मिलाकर सर्व - उत्तरगुण- प्रत्याख्यान के अनागत आदि दस भेद होते हैं । इन प्रत्याख्यानों का पालन स्वयं करना चाहिए तथा समाधि के अनुसार दूसरों को आहार का दान तथा तप के सम्बन्ध में उपदेश देना चाहिए। वे दस प्रकार के प्रत्याख्यान इस प्रकार हैं - 207 १. अनागत - पर्यूषण पर्व में करने योग्य अट्ठम आदि तप, ग्लान आदि की वैयावृत्य का काम होने से पर्यूषण से पहले करना अनागत-तप है । २. अतीत (अतिक्रान्त) - अशक्ति तथा वैयावृत्य में संलग्न होने से चातुर्मास आदि में करने योग्य तपश्चर्या पर्यूषण आदि बीतने के बाद करना । Jain Education International ३. कोटि-सहित एक तप की समाप्ति होने पर उसी दिन प्रत्याख्यान द्वारा दूसरे तप का आरम्भ करना, अर्थात् दो तप की संधि से युक्त पच्चक्खाण को कोटि- सहित प्रत्याख्यान कहते हैं । ४. नियन्त्रित - प्रत्याख्यान जो प्रत्याख्यान रोगी होने पर भी सभी को नियत समय पर, अर्थात् प्रत्येक मास की अष्टमी आदि तिथियों में निश्चित रूप से करना पड़ता है, वह नियन्त्रित - प्रत्याख्यान कहलाता है। प्रथम संघयण वालों द्वारा यह प्रत्याख्यान किया जाता था, वर्तमान में यह प्रत्याख्यान विच्छिन्न हो गया है । - — - ५. साकार आकार (मर्यादा) सहित प्रत्याख्यान को साकार - प्रत्याख्यान कहते हैं । आहार आदि का त्याग कर देने पर भी गुरुजनों के कहने से आहार आदि ग्रहण करना पड़े, तो भी प्रत्याख्यान का भंग नहीं होता हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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