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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
206 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
१४.कपित्थ-दोष - पहने हुए वस्त्र पसीने से मैले हो जाएंगे
इस भय से कपड़ों को इकट्ठे करके रखना, अर्थात् उनका गोपन करके रखना ।
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१५. शिरकम्प - दोष - यथाविष्ट की भाँति सिर हिलाना ।
१६. मूकदोष - मूक व्यक्ति की भाँति हूं-हूं करना । १७. भ्रू - अंगुली - दोष नमस्कार मंत्र आदि गिनने के लिए आलंबन लेना अथवा बार-बार पलक
अंगुली का
झपकाना । १८. मदिरा - दोष
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गिनते समय बड़बड़ाहट करना ।
१६.
६. प्रेक्ष्य - दोष - वानर की तरह आस-पास देखते रहना तथा होंठ हिलाना ।
वारुणी ( शराबी ) की तरह नमस्कार मंत्र
इस प्रकार कायोत्सर्ग के उन्नीस दोष बताए गए हैं। सभी अनुष्ठानों को करते समय साधु के लिए जो विशिष्ट बाते हैं, वे इस प्रकार हैं साधु को नाभि से नीचे तथा घुटने से चार अंगुल ऊपर चोलपट्टा पहनना चाहिए। दाएँ हाथ में मुखवस्त्रिका तथा बाएँ हाथ में रजोहरण होता हैं । कुछ आचार्यों का मत है कि कायोत्सर्ग नमस्कारमंत्र द्वारा पूर्ण करना चाहिए एवं कुछ आचार्यों का मत है कि जिनस्तुति द्वारा कायोत्सर्ग पूर्ण करना चाहिए। उत्तरार्द्ध की गाथाओं में कायोत्सर्ग के जो उन्नीस दोष बताए हैं, उन दोषों का त्याग करते हुए सभी कायोत्सर्ग में “चन्देसुनिम्मलयरा " गाथा तक चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे तथा नमस्कार - मंत्र के चिन्तन में नवपद का चिन्तन करे । सभी कायोत्सर्ग 'नमो अरिहंताणं' पद बोलकर पूर्ण करे, उसके बाद यथायोग्य स्तुति बोले । इस प्रकार आवश्यक - विधि में कायोत्सर्गआवश्यक की यह विधि पूर्ण होती है ।
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अब प्रत्याख्यान-आवश्यक की व्याख्या करते हैं । प्रत्याख्यान दो प्रकार के होते हैं १. मूलगुण - प्रत्याख्यान एवं २. उत्तरगुणप्रत्याख्यान। देशविरति एवं सर्वविरति के भेद से मूलगुण - प्रत्याख्यान के दो भेद होते हैं - १. साधुओं के पंचमहाव्रत सर्वमूलगुण- प्रत्याख्यान कहलाते हैं तथा २. श्रावकों के पंचाणुव्रत देशमूलगुण- प्रत्याख्यान
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