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आचारदिनकर (खण्ड-४) 208 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
६. अनाकार - सभी आगारों से रहित प्रत्याख्यान को अनाकार-प्रत्याख्यान कहते हैं।
७. परिमाणकृत - आहार-पानी के विषय में दांत (दत्ति) एवं कवल की संख्या का परिमाण करना, परिमाणकृत-प्रत्याख्यान कहलाता
८. निरवशेष-प्रत्याख्यान - चारों प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग करना निरवशेष-प्रत्याख्यान कहलाता है।
६. साकेत - अंगुष्ठ, मुष्टि, ग्रन्थि आदि चिन्हों का संकल्प करके विरति में रहने को साकेत-प्रत्याख्यान कहते है।
१०. अद्धा-प्रत्याख्यान - काल-परिमाण सहित प्रत्याख्यान को अद्धा-प्रत्याख्यान कहते हैं। इस प्रत्याख्यान के दस भेद हैं -
(१) नवकारसी - नमस्कारमंत्र सहित सूर्योदय के दो घड़ी तक का जो प्रत्याख्यान होता हैं, उसे नवकारसी-प्रत्याख्यान कहते है।
(२) पौरुषी - जिस समय धूप में खड़े होने पर अपनी छाया पुरुष-प्रमाण, अर्थात् स्वशरीर-प्रमाण पड़े, उस समय तक का प्रत्याख्यान पौरुषी प्रत्याख्यान कहलाता है, अर्थात् सूर्योदय से एक प्रहर तक का प्रत्याख्यान पौरुषी कहलाता है।
(३) पूर्वार्द्ध - मध्याह्न तक, अर्थात् दिन के पूर्वार्द्ध तक का प्रत्याख्यान पूर्वार्द्ध कहलाता है।
(४) एकासन - एक आसन से बैठकर एक वक्त भोजन करना, एकासन कहलाता है।
(५) एकस्थान - भोजन करते समय जिस स्थिति में बैठा हो, अन्त तक उसी स्थिति में बैठे रहना, अर्थात् हाथ-पैर आकुंचन-प्रसारण न करना।
(६) आचाम्ल - जिसमें आम्लरस का त्याग होता हैं तथा एक . बार आहार-पानी ग्रहण किया जाता है, उसे आचाम्ल-प्रत्याख्यान कहते
(७) अभक्तार्थ - उपवास, अर्थात् तीनों आहारों का जो त्याग होता है, वह अभक्तार्थ-प्रत्याख्यान कहलाता है।
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