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________________ भगवन्तं तं जहामि पि एयम्मि जे गुणा वा भावावियामा रोएम आचारदिनकर (खण्ड-४) 179 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अरिहंत भगवन्त को नमस्कार करता हूँ। (इस प्रकार अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करके जो पूर्व में कहा गया है, उसका आख्यापन करते हुए कहते हैं) १. महव्वयउच्चारणा पंचविहा यावत् पंचमहव्वयाइं तक २. अप्पसत्था य जे यावत् आलय विहार समिओ जुत्तो गुत्तो उवट्ठिओ समणधम्मे तक एवं ३. तिविहेणं अप्पमत्तो यावत् एवं तिदंड विरओ तक - इस प्रकार निश्चय से तीन बार महाव्रतों का उच्चारण किया है या अंगीकार किए हैं। अब सूत्रों का कीर्तन करना चाहता हूँ। श्रुतधारी मुनियों को नमस्कार करके अब श्रुतों के नामों का कीर्तन करते हुए कहते हैं - "नमो तेसिं खमासमणाणं, जेहिं इमं वाइयं छव्विहमावस्सयं भगवन्तं तं जहा- सामाइयं चउवीसत्थो वन्दणयं पडिक्कमणं काउसग्गो पच्चक्खाणं। सब्वेसि पि एयम्मि छविहे आवस्सए भगवन्ते ससुत्ते सअत्थे सगंथे सनिज्जुत्तिए ससंगहणीए जे गुणा वा भावा वा अरिहंतेहिं भगवन्तेहिं पन्नत्ता वा परूविया वा ते भावे सद्दहामो पत्तियामो रोएमो फासेमो अणुपालेमो। भावार्थ - क्षमादि गुणों से युक्त उन श्रमणों को नमस्कार हो, जिन्होंने अतिशय गुण वाले छः प्रकार के आवश्यकसूत्र का वाचन करके सुनाया है। वे छः प्रकार निम्न हैं - १. सामायिक २. चतुर्विंशतिस्तव ३. वन्दनक ४. प्रतिक्रमण ५. कायोत्सर्ग एवं ६. प्रत्याख्यान। ये सभी षडावश्यक सूत्र, अर्थनियुक्ति और संग्रहणी से युक्त हैं। मूलग्रन्थ के सूत्रों में उसका विषय संक्षिप्त रूप से ही उल्लेखित होता है। इन सूत्रों की विशद व्याख्या तो वृत्ति, टीका, भाष्य, वार्तिक और चूर्णि आदि में मिलती है। अर्थ से युक्त सूत्र का सम्पूर्ण पाठ ग्रन्थ कहा जाता है। विषय-सूची सहित उसके पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत व्याख्या नियुक्ति के रूप में होती है, अतः नियुक्तिशास्त्र के परिशिष्ट रूप ही है। उसके कुछ पदों एवं विषयों का सूचन संग्रहणी में होता है। इनमें ज्ञान, आचरण, प्रसार और अन्त में स्वर्ग एवं मोक्ष प्रदान करना आदि जो कोई गुणधर्म है, देवादिकृत पूजा के योग्य भगवन्तों द्वारा सामान्य और विशेष रूप से प्ररूपित वे सभी पदार्थ एवं भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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