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________________ आचारदिनकर (खण्ड- -8) भावार्थ - - निश्चित रूप से इस प्रकार किया गया महाव्रतों का उच्चारण काया की स्थिरता प्रदान करने वाला, माया, मिथ्यात्व एवं निदानरूप शल्यों का नाश करने वाला, चित्त को समाधि और बल देने वाला, गत समय में उत्पन्न विषादों का अन्त करने वाला या संयम को दृढ़ करने वाला, संयम एवं यशरूपी पताका को धारण कराने वाला उसकी स्थापना कराने वाला तथा गुणों की आराधना कराने वाला है । ये महाव्रत कर्मों के आगमन को रोककर शुभ संवरयोग में स्थिर रखने वाला एवं प्रशस्त धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान के उपयोग में जोड़ने वाला, परमार्थ एवं उत्तमार्थ रूप है, इसलिए तीनों लोकों में हितकारक इन महाव्रतों की स्वीकृति को राग-द्वेषरूपी कर्मरज का नाश करने वाले तीर्थंकरों ने प्रवचन का साररूप कहा है। उन्होंने भव्य प्राणियों को षट्जीवनिकाय के जीवों की रक्षारूप संयम का उपदेश देकर तथा स्वयं उनका यथावत् रूप से पालन कर सुखस्थान को प्राप्त किया है। ऐसे उन जिनेश्वरों को मैं नमस्कार करता हूँ । वर्तमान में श्रीवर्धमानस्वामी का शासन होने से उन्हें भी मैं नमस्कार करता हूँ । वह नमस्कार-सूत्र इस प्रकार है - "नमोत्थु ते सिद्ध, बुद्ध, मुत्त, नीरय, निस्संग माण मूरण, गुणरयणसागरमणंतमप्पमेयं, नमोत्थु ते महइ महावीर वद्धमाण सामिस्स नमोत्थु ते अरहओ, भगवओ त्तिकट्टु । एसा खलु महव्वय उच्चारणा कया । इच्छामो सुत्त कित्तणं काउं ।" भावार्थ १ 178 सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, कर्मरूपी रज से रहित उसके संसर्ग से रहित, शल्यों से रहित, गर्व का नाश करने वाले, गुरुपद पर आसीन, गुणरूपी रत्नों के समुद्र, अनन्त ज्ञान के धारक और जिसको छद्मस्थ नहीं जान सके, उसको भी जानने वाले, संसार - सागर को पार करने वाले, अरिहंत भगवन्त आपको नमस्कार हो । महान् पराक्रमी श्रमण भगवान् वर्द्धमानस्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अन्य ग्रन्थों में सिल्लो पाठ नहीं मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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