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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 153 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि मन्दयाए' किड्डयाए' तिगारवगरुयाए चउक्कसाओवगएणं पंचिंदियवसट्टेणं पडिपुण्णभारिआए सायासोक्खमणुपालयंतेणं। इहं वा भवे अन्नेसु वा भवग्गहणेसु पाणाइवाओ कओ वा काराविओ वा कीरंतो वा परेहिं समणुन्नाओ तं निंदामि गरिहामि तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं।" भावार्थ - पूर्वकाल में अज्ञानतावश धर्म-श्रवण नहीं करने पर और सुनकर भी धर्म का बोध नहीं होने पर, अथवा श्रवण और बोध होने पर भी धर्म का आचरण भलीभाँति नहीं करने पर - इन चार कारणों से मेरे द्वारा प्राणातिपात हो गया हो, उसका मैं त्याग करता हूँ, अथवा धर्म को अंगीकार करने पर भी कषाय आदि प्रमादों से, राग-द्वेष की व्याकुलता से, बालभाव से, मिथ्यात्व आदि मोह से, दूसरों के रागादि के वशीभूत होने से, क्लेशकर्म करने से, ऋद्धि-रस-शाता-इन तीन गारवों के अभिमान से, क्रोधादि चार कषायों के उदय से, स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियों से उत्पन्न आर्त्तध्यान से, कमों के भार से, सातावेदनीय कर्मोदय से प्राप्त सुख-भोगों की आसक्ति से - इस प्रकार प्राणातिपात महाव्रत के अतिचारों द्वारा इस भव में अथवा अतीत एवं अनागत सम्बन्धी अन्य भवों में जीवों का मैंने विनाश किया हो, करवाया हो या करते हुए दूसरों के पाप की अनुमोदना की हो, तो उस हिंसाजनक प्रवृत्ति की मैं निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ। कृत, कारित और अनुमोदित- ऐसे त्रिविध प्राणातिपात की मन-वचन-कायारूप त्रिविध योग से निन्दा करता हूँ, गर्दा करता हूँ। ____ “अईयं निन्दामि पडुप्पन्नं संवरेमि अणागयं पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं जावज्जीवाए अणिस्सिओ हं नेव सयं पाणे अइवाएज्जा हात, कारित आरत्रविध योग से निराम अणागय पण अइवाएज ___ यहा मूलग्रन्थ में मूल पाठ "मंदयाए एवं किड्डयाए" शब्द है, किन्तु संस्कृत छाया में ग्रंथकार ने इसको क्रमशः "भण्डतया एवं क्लिष्टतया“ रूप में उल्लेख करके उनका अर्थ क्रमशः दूसरों के रागादि के वशीभूत होने से तथा क्लेशकर्म द्वारा किया है, जबकि साधु प्रतिक्रमण सूत्र में अनुवादकर्ता विजय यतीन्द्रसूरि द्वारा इनका अर्थ क्रमशः आलस्य आदि से तथा द्यूतादि क्रीड़ा करने के कारण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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