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आचारदिनकर (खण्ड-४)
152 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
अहिरणसोवणियस्स, उवसम्प्पभवस्स नवबंभचेर गुत्तस्स अपयमाणस्स', भिक्खावित्तिअस्स, कुक्खी, संबलस्स, निरग्गिसरणस्स, संपक्खालियस्स, चत्तदोसस्स, गुणग्गाहियस्स, निव्वियारस्स,
निव्वित्तिलक्खणस्स, अविसंवाइयस्स,
असंनिहिसंचयस्स',
पंचमहव्वयजुत्तस्स,
संसारपारगामिस्स, निव्वाणगमण - पज्जवसाणफलस्स ।“
भावार्थ
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१. केवली भगवान् द्वारा प्रज्ञप्त २. प्राणीमात्र की रक्षा करने एवं कराने वाला, अर्थात् दया का प्रतीक ३. सत्य से व्याप्त ४ विनय से उत्पन्न ५. क्षमा से श्रेष्ठ ६. द्रव्य एवं सुवर्ण आदि से रहित ७. कषाय के क्षय से उत्पन्न होने वाला ८. नवविध ब्रह्मचर्य गुप्तियों के सहित ६. मान से रहित १०. भिक्षाचर्या द्वारा जीवन-यापन कराने वाला ११. उदरपूर्ति के अतिरिक्त कोई खाद्य वस्तु का संचय नहीं कराने वाला १२. अग्नि- संस्पर्श के आदेश से रहित १३. पापमल का सम्पूर्णतया क्षय कराने वाला १४. राग आदि दोषों का त्याग कराने वाला १५. गुण ग्रहण कराने के स्वभाव वाला १६. इन्द्रिय एवं मन के विकारों को दूर कराने वाला १७. सर्वसावद्ययोग की विरति कराने वाला १८. पाँच महाव्रतों से युक्त १६. संयम के प्रति ग्लानि को दूर करने वाला २०. कथनी एवं करनी में समानता कराने वाला, अर्थात् संविदा से युक्त २१. संसार - समुद्र से पार कराने वाला एवं २२. मोक्षपद - प्राप्ति हेतु परमार्थरूपी बल को देने वाला - इस प्रकार बाईस विशेषण वाला यह धर्म है । इस धर्म को अंगीकार करने के पूर्व जो प्राणातिपात मैंने निम्न कारणों से -
"पुव्विं अण्णाणयाए असवणयाए, अबोहिआए, अणभिगमेणं । अभिगमेण वा पमाएणं, रागदोसपडिबद्धयाए रागदोसपडिबद्धयाए बालयाए मोहयाए
१
मूलग्रन्थ में अपयमाणस्स का अर्थ मान से रहित है, जबकि " साधु प्रतिक्रमण सूत्र" के अनुवादकर्त्ता यतीन्द्रसूरि द्वारा इसका अर्थ पचन - पाचन आदि आरम्भ से रहित ऐसा बताया गया है ।
२
इसी प्रकार मूलग्रन्थ में असंनिहिसचंयस्स का " संयम के प्रति ग्लानि को दूर करने वाला" - ऐसा अर्थ किया गया है, जबकि साधु प्रतिक्रमण सूत्र के अनुवादकर्त्ता ने इसका अर्थ मोदक, उदक, खर्जूर, हरड़, मेवा आदि का संचय न कराने वाला किया है।
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