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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 151 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पढमे महव्वए - कुछ लोग यहाँ इस पद में सप्तमी के स्थान पर प्रथमा विभक्ति मानते हैं। (अर्द्धमागधी में पढ़मे शब्द सप्तमी न होकर प्रथमा ही होता है।) से पाणाइवाए - "से" शब्द व्रत का वाचक है। स्थावर, पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय - ये पाँच स्थावर हैं, इनके सूक्ष्म एवं बादर - दो भेद हैं। बेइन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव त्रसजीव कहलाते हैं। जीवों में से किसी भी जीव का घात करना प्राणातिपात कहलाता है। पुनः द्रव्यादि के भेदों से प्राणातिपात की व्याख्या करते हैं। “से पाणाइवाए चउविहे पन्नत्ते, तं जहा-दव्वओ खित्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओणं पाणाइवाए छसु जीवनिकाएसु, खित्तओणं पाणाइवाए सव्वलोए, कालओणं पाणाइवाए दिया वा राओ वा, भावओणं पाणाइवाए रागेण वा दोसेण वा।" भावार्थ - ___ परमात्मा ने प्राणातिपात, अर्थात् जीवों की हिंसा चार प्रकार की बताई है। वे चार प्रकार हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव।। __ द्रव्य से प्राणातिपात - पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय एवं त्रयकाय - इन षट्जीवनिकायों में किसी जीव की हिंसा, क्षेत्र की अपेक्षा प्राणातिपात - चौदह राजलोकपर्यन्त लोक में कहीं भी हिंसा करना, काल-आश्रित दिवस में या रात्रि में प्राणातिपात, अर्थात् जीवों की हिंसा करना और राग तथा द्वेष के वशीभूत जीवों की हिंसा करना भाव आश्रित है। अज्ञानता आदि के द्वारा जीवों की विराधना करने से जो यतिधर्म के व्रत का भंग हुआ हो, उसकी विशेष निन्दा के लिए कहते हैं - "जं पि य मए इमस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स, अहिंसा लक्खणस्स, सच्चाहिट्ठियस्स, विणयमूलस्स, खन्तिप्पहाणस्स, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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