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आचारदिनकर (खण्ड-४)
137 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इस प्रकार कुल तेईस अध्ययनों से। प्रथम श्रुतस्कन्ध के १६ अध्ययनों के नाम पूर्व में कहे गए हैं, द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन निम्नांकित हैं - १. पुण्डरीक २. क्रियास्थान ३. आहारपरिज्ञा ४. प्रत्याख्यान ५. अनगार ६. आर्द्रकुमार एवं ७. नालन्दीय।
चउवीसाए देवेहिं - चौबीस देव निम्नांकित हैं -
असुरकुमार आदि दस भवनपति, भूत, यक्ष आदि आठ व्यन्तर, सूर्य-चन्द्र आदि पाँच ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव - इस प्रकार कुल चौबीस जाति के देव हैं। यहाँ उत्तराध्ययनसूत्र के सुप्रसिद्ध टीकाकार आचार्य शान्तिसूरि आदि कितने ही आचार्य देव शब्द से चौबीस तीर्थंकर देवों का भी ग्रहण करते हैं। (इस अर्थ के मानने पर इसका अतिचार होगा - उनके प्रति आदर या श्रद्धाभाव न रखना, उनकी आज्ञानुसार न चलना आदि)
पंचवीसाएभावणाहिं - पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावना निम्नांकित है -
(१) अहिंसा-महाव्रत की पाँच भावनाएँ -
१. मन का संयम २. एषणासमिति का पालन करना ३. आदान-निक्षेप-समिति का पालन करना ४. ईर्यासमिति का पालन करना ५. यथेष्ट अन्न-पान ग्रहण करना।
(२) सत्य-महाव्रत की पाँच भावनाएँ -
१. हंसी-मजाक का त्याग २. लोभ का त्याग ३. भय का त्याग ४. क्रोध का त्याग ५. विचारकर बोलना।
(३) अस्तेय-महाव्रत की पाँच भावनाएँ -
१. प्रतिलेखित स्थान की याचना करना २. प्रतिदिन (तृण-काष्ठादि) का अवग्रह लेना ३. अवग्रह के परिमाण का चिन्तन करना ४. हमेशा साधर्मिक के अवग्रह की याचना करना ५. आज्ञा प्राप्त, अर्थात् दिए गए आहार पानी का सेवन करना।
(४) ब्रह्मचर्य-महाव्रत की पाँच भावनाएँ -
१. स्त्री, नपुंसक एवं पशु के सान्निध्य से रहित स्थान में रहना। २. रागपूर्वक स्त्रीकथा करने का त्याग करना ३. पूर्वकृत काम-भोग का स्मरण नहीं करना ४. स्त्रियों के मनोहर अंगोपांग का
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