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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि आहार करना १६. दिनभर कुछ न कुछ खाते-पीते रहना एवं २०. एषणा - समिति का ध्यान न रखना। एगवीसाए सबलेहिं इक्कीस सबल दोष हैं - १. हस्तमैथुन करना २. स्त्री-स्पर्श आदि रूप मैथुन का सेवन करना ३. रात्रि - भोजन करना ४. आधाकर्मी - आहार ग्रहण करना ५. राजपिंड लेना ६. साधु के निमित्त खरीदा हुआ आहार ग्रहण करना ७. साधु के निमित्त उधार लाया हुआ आहार ग्रहण करना ८. साधु के निवास स्थान पर लाकर दिया गया आहार ग्रहण करना ६. साधु के निमित्त छीनकर लाया हुआ आहार ग्रहण करना १०. सामने लाकर दिया गया आहार ग्रहण करना ११. छः मास में एक गण से दूसरे गण में जाना १२. एक महीने में तीन बार उदक का लेप लगाना (नदी आदि में उतरना ) १३. एक मास में तीन बार माया - स्थान का सेवन करना १४. जान-बूझकर हिंसा करना १५. जान-बूझकर झूठ बोलना १६. जान-बूझकर चोरी करना जान-बूझकर सचित्त पृथ्वी पर बैठना, सचित्त शिला पर सोना आदि १८. जान-बूझकर जंगम एवं स्थावर जीवों से युक्त भूमि पर निवास करना १६. एक वर्ष में दस बार उदक - लेप ( सचित्त जल में प्रवेश करना) लगाना एवं दस बार माया स्थानों का सेवन करना । २०. जानबूझकर सचित्त जल एवं रज वाले हाथ या कड़छी से दिया जाने वाला आहार ग्रहण करना एवं २१. जानबूझकर कन्द, मूल, फल, बीज युक्त मिश्र आहार का सेवन करना । १७. बावीसाए परीसहेहिं निम्न बाईस परीषह हैं - १. क्षुधा २. पिपासा ६. अचेल ७. अरति १२. आक्रोश 136 ५. दंशमशक १०. निषद्या १४. याचना १५. अलाभ ११. शय्या १६. रोग १७. तृण - स्पर्श १६. सत्कार - पुरस्कार २०. प्रज्ञा २१. अज्ञान एवं २२. सम्यक्त्व से विचलित करने हेतु दबाव | तेवीसाए सूयगडज्झयणेहिं - सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पूर्वोक्त सोलह अध्ययन एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सात अध्ययन For Private & Personal Use Only Jain Education International चित्त को मलिन करने वाले निम्न ३. शीत ४. उष्ण ८. स्त्री - परीषह ६. चर्या १३. वध १८. मल www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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