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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 138 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अवलोकन नहीं करना तथा अपने शरीर की विभूषा नहीं करना एवं ५. बताए गए परिमाण से अधिक आहार न करना। (५) अपरिग्रह-महाव्रत की पाँच भावनाएँ - पाँचों इन्द्रियों के विषयों - शब्द, रूप, गन्ध, रस एवं स्पर्श के इन्द्रियगोचर होने पर भी मनोज्ञ के प्रति रागभाव एवं अमनोज्ञ के प्रति द्वेषभाव न लाकर उदासीन भाव रखना। छव्वीसाए दसाकप्पववहाराणं उद्देसणकालेणं - दशाश्रुतस्कन्ध के दस, बृहत्कल्प के छः और व्यवहारसूत्र के दस-इन छब्बीस अध्ययनों के पठनकाल में व्यतिक्रम करना एवं उनके अनुसार आचरण न करना। __सत्तावीसाए अणगारगुणेहिं - अनगार के निम्न सत्ताईस गुण १. अहिंसा २. सत्य ३. अस्तेय ४. ब्रह्मचर्य और ५. अपरिग्रह - इन पाँच महाव्रतों का पालन करना ६. रात्रिभोजन का त्याग करना ७-११. स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु एवं श्रोत - इन पाँचों इन्द्रियों को वश में रखना १२. भावसत्य १३. वस्त्र, पात्र आदि की भली-भाँति प्रतिलेखना करना १४. क्षमा १५. लोभनिग्रह १६. मन की शुभ प्रवृत्ति १७. वचन की शुभ प्रवृत्ति १८. काय की शुभ प्रवृत्ति करना १६-२४. छः काय के जीवों की रक्षा करना २५. संयमयोग-युक्तता २६. शीतादि कष्ट-सहिष्णुता २७. मारणान्तिकउपसर्ग को भी समभाव से सहन करना। इन गुणों का पालन नहीं करना। अट्ठवीसाए आयारपकप्पेहिं - साधु को जो आचार में स्थित करे, उसे आचार- प्रकल्प कहते हैं। ये आचार-प्रकल्प अट्ठाईस प्रकार के बताए गए हैं - १. शस्त्रपरिज्ञा २. लोकविजय ३. शीतोष्णीय ४. सम्यक्त्व ५. आवंति (लोकसार) ६. ध्रुव ७. विमोह ८. उपधानश्रुत ६. महापरिज्ञा १०. पिंडैषणा ११. शय्या १२. ईर्या १३. भाषार्या १४. वस्त्रपात्रैषणा १५. अवग्रह १६. प्रतिमा १७-२३. सप्त सप्तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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