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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४ ) 134 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि विशेष साधना करता है । इस प्रकार भिक्षु की ये बारह प्रतिमाएँ बताई गई हैं। (नोट - इन प्रतिमाओं के विस्तृत विवरण हेतु दशाश्रुतस्कन्ध की सातवीं दशा देखें ।) तेरसहिं किरियाट्ठाणेहिं - निम्न तेरहक्रिया स्थान हैं १. अर्थ-क्रिया २. अनर्थ-क्रिया ४. अकस्मात् क्रिया ५. दृष्टि - विपर्यास-क्रिया ६. ७. आध्यात्म- क्रिया ८. मान-क्रिया ६. मित्र- क्रिया ११. लोभ - क्रिया १२. ईर्यापथिक क्रिया १३. मृषा - क्रिया । चउद्दसहिं भूयगामेहिं निम्न चौदह भूतग्राम हैं, अर्थात् - - Jain Education International जीवसमूह हैं १. सूक्ष्म एकेन्द्रिय २. एकेन्द्रिय ३ द्वीन्द्रिय ४. त्रीन्द्रिय ५. चतुरिन्द्रिय ६. पंचेन्द्रिय ७ संज्ञी । पर्याप्ता एवं अपर्याप्ता - इन दो भेदों से कुल चौदह भेद होते हैं । पनरस्सहिं परमाहम्मिएहिं पन्द्रह प्रकार के परमाधामी देवों से, अर्थात् महापाप करने वाले, नारकीय जीवों को संतापित करने वाले निम्न पन्द्रह देव हैं १. अम्ब २. अम्बरीष ३. श्याम ४. शबल ५. रुद्र ६. महारुद्र ७. काल ८. महाकाल ६. असिपत्रक १०. धनुष ११. कुम्भक १२. वालुक १३. वैतरणक १४. खरस्वर एवं १५. महाघोष । सोलहसाहिं गाहा सोलसएहिं - गाथा षोडशक, अर्थात् सूत्रकृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के निम्न सोलह अध्ययन कहे गए हैं. १. समय २. वैतालीय ३. उपसर्ग - परिज्ञा ४. स्त्री-परिज्ञा ५. नरक - विभक्ति वीर - स्तुति ७. (कु)शील - परिज्ञा ६. धर्म १०. समाधि ११. (मोक्ष) मार्ग १२ . समवसरण अवितथ ( यथातथ्य ) १४. ग्रन्थ १५. यमक ( आदानीय) एवं १६. ६. वीर्य १३. - - ३. हिंसादि- क्रिया अदत्तादान - क्रिया १०. माया - क्रिया ८. गाथा- अध्ययन । सत्तरसविहे असंयमे - सत्रह प्रकार का असंयम, अर्थात् पाँच आश्रवद्वार, पाँच इन्द्रियों के व्यापार, चार कषाय एवं तीनों योगों को दुष्कर्म में नियोजित करना इस प्रकार असंयम के सत्रह प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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