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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
३. दीवार आदि की ओट से स्त्री, नपुंसक आदि के शब्द,
गीत आदि न सुनें ।
४. राग से युक्त स्त्रियों की कथा - वार्ता का त्याग करें । ५. पहले भोगे हुए भोगों का स्मरण न करें । ६. स्त्रियों के मनोहर अंगोपांग न देखें । ७. अपने शरीर की विभूषा न करें । ८. स्निग्धभोजन का त्याग करें । एवं ६. अतिमात्रा में आहार न करें ।
आचारदिनकर (खण्ड-४)
दसविहेसमणधम्मे - श्रमणधर्म में निम्न दसविध हैं - १. संयम २. सत्य ३. शौच ४. ब्रह्म ५. आकिंचन्य ६. तप ७. शान्ति ८. मार्दव ६. आर्जव एवं १०. मुक्ति । एकारसहिं उवासगपडिमाहिं
उपासक की निम्न ग्यारह
प्रतिमाएँ हैं -
१. दर्शन-प्रतिमा
४. पौषध- प्रतिमा ७. आरम्भत्याग-प्रतिमा १०. श्रमणभूत- प्रतिमा ।
बारसहिं भिक्खू पडिमाहिं - भिक्षु की बारह प्रतिमाओं में प्रथम सात प्रतिमाएँ एक-एक मास की होती हैं। इसमें प्रथम मास में एक दत्ति आहार की एवं एक दत्ति पानी की ग्रहण करते है । फिर प्रत्येक मास में एक-एक दत्ति बढ़ाते हुए सातवें मास में सात दत्ति आहार की एवं सात दत्ति पानी की ग्रहण करते हैं। उसके पश्चात् आठवीं, नवीं एवं दसवीं ये तीन प्रतिमाएँ सात-सात अहोरात्र की हैं। इन प्रतिमाओं में निर्जल उपवासपूर्वक सात-सात दिन तक विभिन्न आसनों की साधना के साथ ध्यान आदि की साधना की जाती है । ग्यारहवीं प्रतिमा अहोरात्र की होती है। इस प्रतिमा में निरन्तर दो उपवास ( छट्ठ) सहित नगर के बाहर जंगल में कायोत्सर्ग की साधना की जाती है । बारहवीं प्रतिमा मात्र एक रात्रि की होती है । इसमें भी साधक पूर्व में निरन्तर तीन उपवास करके अन्तिम दिन रात्रि में
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२. व्रत - प्रतिमा ३. सामायिक - प्रतिमा ब्रह्मचर्य-प्रतिमा ६. सचित्तत्याग-प्रतिमा ६. वज्र - प्रतिमा
८. अनुमतित्याग-प्रतिमा
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